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कातिल हँसी तू इक दफा जो हमको देख ले
किस की हो फिर मजाल भी जो तुझको देख ले
औरो से हूँ जुदा तुझे भी होगा कल यकी
मलिका-ए- हुस्न पहले जो तू सबको देख ले
दिलकश हसींन कातिलों में कुछ तो बात है
धड़कन थमें जो इक दफा भी उसको देख ले
दिल चाहता जिसे उसे मैं कहता हूँ खुदा
जब सामने खुदा तो कोई किसको देख ले
सागर की आरजू कभी भी थी नहीं मेरी
आँखों में जाम भर के ही तू हमको देख ले
नफरत तुझे मरीज से है मानते हुयी
मेरी ग़ज़ल में तू मरीजे गम को देख ले
इस नज्म में छुपी हुई है दास्ताँ मेरी
कातिल तू इसमें अपने हर सितम को देख ले
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू जी . .. आपके मार्गदर्शन के लिए तहे दिल धन्यवाद ..ईता दोष को फिर से देखूँगा ..पुनह धन्यवाद के साथ
आदरणीय सौरभ सर ...आप की सराहना यदि किसी रचना पर मुझे मिलती है तो मेरी कलम को ताकत और मुझे हौसला मिल जाता है ..आप सभी बिद्व्त्जनों का यूं ही आशीर्वाद सदैव मिलता रहे इसी ख्वाइश के साथ...सादर
शिज्जूभाईजी, आपने बिल्कुल ठीक कहा है. हाल में समाप्त मुशायरे के संकलित ग़ज़लों में इता दोष वाले मतलों को इंगित किया गया है.
मंच का प्रयास और इसकी अपेक्षा यही रहती होती है, कि छंदोत्सव या मुशायरे में संकलित रचनाओं/ग़ज़लों में बताये गये दोषों पर रचनाकार ध्यान दें. लेकिन आयोजनों की समाप्ति के बाद उन संकलनों पर अक्सर अपेक्षित चर्चा ही नहीं होती. यदि ऐसा होने लगे तो कई परेशानियाँ दूर होने लगेंगीं.
आदरणीय डॉ आशुतोष जी इस तरह तो ईता दोष हो रहा है
इस रदीफ़ पर अच्छी कहन की प्रस्तुति हुई है, आदरणीय.
हार्दिक बधाई
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..भाईसाब अगर पहले शेर में मुझको की जगह हमको कर दिया जाए तो क्या रदीफ़ अको हो जाने से ठीक हो सकता है परामर्श देने का कष्ट करें ..सादर
अरुणजी ..बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने ..मेरी नजर में चूक हो गयी . सलाह के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ !! आ. अरुण भाई की बात सही लग रही है , जरा सोच के देखियेगा ॥
आदरणीय आशुतोष सर जी काफिया चुनाव में गड़बड़ी हो गई जरा देखिये.
कातिल हँसी तू इक दफा जो मुझको देख ले
किस की हो फिर मजाल भी जो तुझको देख ले
मतले में काफिया और रदीफ़ कुछ इस प्रकार हैं.
रदीफ़ : झको देख ले : काफिया : मु , तु
किन्तु अन्य अशआरों में इसका निर्वाहन नहीं हुआ है. एक बार पुनः जाँच लें. सादर
बहुत खूबसूरत गजल आशुतोष मिश्रा जी....
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