For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  “अरे! रामेश्वर भाई..समझ नही आता क्या करें ? किस को क्या समझाएं ? किस दुःख में शामिल होने चलें?”

“सही कह रहे हो..तुम किशन भाई, वहां बेचारे दीनानाथ जी का शव अंतिम संस्कार की राह देख रहा है और उनके चारों बेटे आपस में बटवारे को लेकर झगड़ रहे है..”

" हाँ भाई..! रामेश्वर ,  दीनानाथ जी ने अपनी अर्थी के लिए चार काँधे तैयार किये थे, न जाने क्या कमी रह गई "

 

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

Views: 1019

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 9, 2014 at 11:18pm

आपकी उत्साहवर्धक सराहना हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय नादिर साहब, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by नादिर ख़ान on April 9, 2014 at 10:36pm

अदरणीय जितेंद्र जी, लघु कथा के माध्यम से अपने समाज का कड़ुआ एवं शर्मनाक सच दिखाया ...गंभीर असर दिखाती लघु कथा के लिए आपको बधाई ...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 9, 2014 at 10:47am

रचना की उत्साहवर्धक सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी.स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 9, 2014 at 10:43am

आदरणीया राजेश जी, आजकल के इंसान का स्वार्थ ही तो  सारी बुराइयों की जड़ है. जिससे महज कुछ सुखों को प्राप्त किया जा सके.

रचना पर आपकी उपस्थिति से मुझे बहुत संबल मिलता है, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 9, 2014 at 9:55am

जी आदरणीय विजय जी, यह कमियां कई कारणों पर निर्भर करती है. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया अति मनोबल प्रदान करती है, आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 9, 2014 at 9:51am

यह कुछ घरों की व्यथा है, जहाँ यह कमी रह गई . रचना पर आपकी  प्रतिक्रिया हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ आदरणीय प्रदीप जी, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 9, 2014 at 9:45am

आप सही कह रहें है आदरणीय अखिलेश जी, लेकिन आज के इंसान को अपने सुखो से  इतना प्रेम  हो गया है की वो सारे संस्कार भूल जाता है खासकर यह हरकतें गैर-जिम्मेदार लोग ज्यादा करते है.

आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2014 at 12:23pm

आदरणीय भाई जितेन्द्र जी, स्वार्थपरता को उकेरती अच्छी लघुकथा के लिए बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 8, 2014 at 12:05pm

क्या कहें जीतेन्द्र जी आज कल तो संस्कारों पर भी स्वार्थ भारी पड़ता है ,चंद शब्दों में एक आज की सच्चाई से रूबरू कराने में लघु कथा कामयाब है| बहुत- बहुत बधाई   

Comment by vijay nikore on April 8, 2014 at 11:55am

//न जाने क्या कमी रह गई...//

 

ऐसे समय पर बच्चों के झगड़े बचपन में न दिए संस्कार के कारण ही नहीं हैं... समाज में देखा-देखी औरों का उनपर क्या प्रभाव हुआ है, यह उस पर भी निर्भर है।

 

भाई जितेन्द्र जी, अच्छी लघुकथा के लिए बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service