For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उत्तर दो ! (कविता)

सुन कर द्रोपदी की चित्कार
कलेजा धरती का फटा क्यों नहीं
देख उसके आँसुओं की धार  
अंगारे आसमां ने उगले क्यों नहीं
चुप क्यों थे विदुर व भीष्म
नेत्रहीन तो घृतराष्ट्र थे
द्रोण ने नेत्र क्यों बंद कर लिए
नजरें क्यों चुरा लिए पाँचों पांडवों ने  
कहाँ था अर्जुन का गांडीव
बल कहाँ था महाबली भीम का
क्या कोई वस्तु थी द्रोपदी
जिसे दाँव पर लगा दिया  
ये कौन सा धर्म था धर्मराज ?

कहाँ थे कृष्ण,
वो तो थी सखी तुम्हारी
स्पर्श करने से पहले ही  
भष्म क्यों नही कर दिया  
हाथ बढ़ाने से पहले ही
सुदर्शन क्यों नही चला दिया ?

हे कृष्ण !
प्रतीक्षा क्यों करते रहे ?
तुम तो अन्तर्यामी थे,

सब के साथ तुम भी
मूकदर्शक क्यों बने रहे ?
क्या दोष था यज्ञसेनी का,
मात्र स्त्री होना ही ना ??

एक स्त्री को वस्तुमात्र
क्यों बना दिया मुरलीधर ?
जिसका कोई भी केश खींच ले,
वस्त्र खींच ले, लगा दे दाँव
बना दिया क्यूँ
इतना विवश और लाचार
चुप क्यों हो मधुसूदन,
उत्तर दो !
ये प्रश्न मुझको बेध रहे हैं
अंतर्मन को छेद रहे हैं
इस वेदना का निदान क्या  ?
उत्तर दो कान्हा !!

मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 941

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sachin Dev on April 15, 2014 at 3:30pm

आदरणीय मीना पाठक जी इस सशक्त रचना पर हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by Meena Pathak on April 15, 2014 at 2:13pm

आदरणीय बृजेश जी, आप से हमेशा मार्गदर्शन मिलता रहता है, इस रचना पर भी मार्गदर्शन हेतु हृदय से आभार | रचना आप को पसन्द आई बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Meena Pathak on April 15, 2014 at 2:10pm

रचना सराहने और त्रुटियों की ओर संकेत करने हेतु बहुत बहुत आभार आ० राजेश कुमारी जी | सादर 

Comment by Meena Pathak on April 15, 2014 at 2:09pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर आभार 

Comment by Meena Pathak on April 15, 2014 at 2:08pm

आदरणीया कुन्ती दी बहुत बहुत आभार रचना पसन्द करने के लिए | सादर 

Comment by बृजेश नीरज on April 14, 2014 at 11:58pm

प्रथम तो आपको इस बात की हार्दिक बधाई कि आपने इतनी सुन्दर कविता रची. आपकी यह रचना आपके सतत प्रयासों और संलग्नता का परिणाम है.

टाइपिंग और व्याकरण की त्रुटियों का ध्यान रखा करें. ये गलतियाँ एक अच्छी रचना का मज़ा ख़राब कर देती हैं.

अब कहन पर बात! द्रौपदी न तो विवश थी, न ही लाचार! महाभारत का द्रौपदी पात्र बहुत ही सशक्त पात्र है. किसी घटना विशेष के कारण ना तो कोई पात्र लाचार हो जाता है और न ही किसी संकट के कारण व्यक्ति. जिस घटना को आपने रचना का विषय बनाया है, वह द्रौपदी के लिए संकट की घडी थी.

कृष्ण अन्तर्यामी थे/हैं, तो वह चाहते तो वह सब कुछ रोक सकते थे, जो कुछ भी पांडवों के साथ हुआ. कंस के अत्याचारों से देवकी-वासुदेव को भी मुक्त कर सकते थे. उन्हें क्या आवश्यकता थी, इतना संघर्ष करने की. इस धरती पर जन्म लेने की. जरासंध से युद्ध करने की. गोवर्धन को उठाने की. क्या वे बारिश नहीं रोक सकते थे. हर कार्य का निमित्त है, हर घटना के निहितार्थ हैं, उन्हें समझने की आवश्यकता है.

स्त्री-विमर्श एक ऐसा विषय है जिस पर लिखा कुछ भी, कैसा भी बहुत वाह-वाहियाँ बटोरता है, पाठक द्वारा उसके औचित्य पर विचार किए बिना.

हर काल में बहुत से रचनाकार हुए लेकिन साहित्य का इतिहास सबको याद नहीं करता, उन्हीं को याद रखता है, जो अपनी रचना में तार्किकता, सन्दर्भ और औचित्य का ख्याल रखते हैं. 

इस कसी हुई रचना पर आपको एक बार फिर से बहुत-बहुत बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2014 at 9:34pm

आ० मीना पाठक जी बहुत ही सशक्त प्रस्तुति है ये वो प्रश्न है जिसका उत्तर कभी नहीं मिलेगा खुद ही हम को मिलकर हल निकालना होगा हमे ही एक जुट होकर परिस्थितयों का डट कर मुकाबला करना है आज तो कदम- कदम पर दुशासन हैं जब तक हम हिम्मत नहीं रखेंगे तब तक कोई कृष्ण बचाने नहीं आएगा ,बहुत- बहुत बधाई कहीं- कहीं टंकण मिस्टेक हैं ठीक कर लीजिये 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2014 at 7:17pm

एक स्त्री को वस्तुमात्र 
क्यों बना दिया मुरलीधर ?
जिसका कोई भी केश खिंच ले, 
वस्त्र खिंच ले, लगा दे दाँव 
बना दिया क्यूँ 
इतना विवश और लाचार 
चुप क्यों हो मधुसूदन, 
उत्तर दो !

आदरणीया मीना जी काश इसका उत्तर कोई दे सकता। ।
गलती पर गलती होती ही चली अब तक
भ्रमर ५

Comment by coontee mukerji on April 13, 2014 at 4:38pm

मीना जी, जब कृष्ण के ज़माने में एक स्त्री का ये हाल था...तो आप समझ सकती कि इस ज़माने में स्त्रियों का क्या हाल हो रहा है....वहाँ तो एक दुर्योधन,एक दुःशासन था...जब कि अब तो सरे आम बहुत दुयोधन और दुःशासन घूम रहे हैं......द्रौपदी में तब भी अपनी रक्षा करने में समर्थ थी....और आज की नारी अगर अपनी कमर कसले तो उसे( क्यों)  जैसे शब्द पूछने नहीं पड़ेगी...इतिहास साक्षी है कि जो औरत अपनी लड़ाई खुद लड़ी है वही जीवन में सफ़ल और पूजनीय  हुई है....जिस दिन औरत अपना अस्तित्व समझ लें रोना धोना बंद कर वीरांगना बने उस दिन उसे किसी उत्तर की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी......ऐसा मेरा मत है और इसपर अमल भी करती हूँ बड़ी सख्ती से....शारीरिक असमर्थता के वाबजूद भी......भगवान कभी कमज़ोरों अबलाओं का साथ नहीं देता है. यह बात दे सबेर औरतों को समझ लेनी चाहिये.शुभकामनाएँ.

Comment by Meena Pathak on April 12, 2014 at 8:02pm

शुक्रिया प्रिय वंदना , सस्नेह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service