आज कल्पवास के आखरी दिन भी वो रोज की तरह पेड़ के नीचे बैठ चारो तरफ नजरें घुमा-घुमा कर किसी को ढूंड रही है जैसे किसी के आने की प्रतीक्षा हो उसे, पूरा दिन निकल गया शाम होने को है, सूर्य की प्रखर किरणें मद्धम पड़ चुकी हैं, पंक्षी अपने-अपने घोसलों में पहुँच गये हैं, बस् कुछ देर में ही दिन पूरी तरह रात्रि के आँचल में समा जाएगा पर अभी तक वो नही दिखा जिसका बर्षों से वो प्रतीक्षा कर रही है |
“वर्षों पहले इसी कुम्भ में कल्पवास के लिए छोड़ गया था ये कह कर की कल्पवास समाप्त होने पर आ के ले जाऊँगा पर आज भी नही आया..शायद अगले कल्पवास में उसे माँ की याद आ जाये..पर तब तक शायद मै ही ना रहूँ” कहते हुए उसकी आवाज काँप गई अपनी झुकी हुयी कमर के साथ किसी तरह अपनी लाठी के सहारे चलती हुई वो रात्रि के अंधेरे में विलीन हो गई |
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू जी आदरणीय सत्यनारायण जी .. बहुत बहुत आभार आप दोनों का | सादर
जी आदरणीय कुशवाहा सर .................सादर आभार
मर्मस्पर्शी सत्य व्यक्त करती लघु कथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया मीना पाठक जी
पता नहीं बच्चों का दिल इतना कठोर कैसे हो जाता है, हृदयस्पर्शी लघुकथा बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीया मीना जी
सादर
ऐसे कितने माता पिता हैं जो अपना सर्वस्व देने के उपरान्त भी आज तक प्रतीक्षा रत हैं. शायद ..?
हमारा कर्तव्य है कि हम इनके बीच जाएँ. ठीक है न.
बधाई.
प्रिय विन्दु बहुत बहुत आभार | सस्नेह
आदरणीया प्राची जी, रचना पर आप की उपस्थिति और सराहना पा कर अत्यंत प्रशन्न हूँ ..आप की शुभकामनाएँ सर आँखों पर ,,, पर आप का 'सस्नेह' कहाँ गया , ढूंड रही हूँ | सादर
ओ!
आदरणीया मीना दी,कितनी मार्मिक बात कितने सलीके से कही है अपने...सच में बड़ी स्पर्शी है।
हार्दिक शुभकामनायें आपको
सादर
आदरणीया मीना जी
कुम्भ कल्पवास की ओट में ऐसी बेधती सच्चाइयाँ.. उफ्फ आत्मा तक ये दर्द जाता है
कैसे कोइ पुत्र अपनी वृद्धा माँ को ऐसे छोड़ सकता है...? और माँ की उम्मीद आज भी ऐसे पुत्र के इंतज़ार में ज़िंदा है..
बहुत मर्मस्पर्शी सार्थक लघु कथा आदरणीया
बहुत बहुत बधाई
रचना पर आप की उपस्थिति, सराहना और मार्गदर्शन, इन सब के लिए मै हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीय सौरभ सर | सादर
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