सुन कर द्रोपदी की चित्कार
कलेजा धरती का फटा क्यों नहीं
देख उसके आँसुओं की धार
अंगारे आसमां ने उगले क्यों नहीं
चुप क्यों थे विदुर व भीष्म
नेत्रहीन तो घृतराष्ट्र थे
द्रोण ने नेत्र क्यों बंद कर लिए
नजरें क्यों चुरा लिए पाँचों पांडवों ने
कहाँ था अर्जुन का गांडीव
बल कहाँ था महाबली भीम का
क्या कोई वस्तु थी द्रोपदी
जिसे दाँव पर लगा दिया
ये कौन सा धर्म था धर्मराज ?
कहाँ थे कृष्ण,
वो तो थी सखी तुम्हारी
स्पर्श करने से पहले ही
भष्म क्यों नही कर दिया
हाथ बढ़ाने से पहले ही
सुदर्शन क्यों नही चला दिया ?
हे कृष्ण !
प्रतीक्षा क्यों करते रहे ?
तुम तो अन्तर्यामी थे,
सब के साथ तुम भी
मूकदर्शक क्यों बने रहे ?
क्या दोष था यज्ञसेनी का,
मात्र स्त्री होना ही ना ??
एक स्त्री को वस्तुमात्र
क्यों बना दिया मुरलीधर ?
जिसका कोई भी केश खींच ले,
वस्त्र खींच ले, लगा दे दाँव
बना दिया क्यूँ
इतना विवश और लाचार
चुप क्यों हो मधुसूदन,
उत्तर दो !
ये प्रश्न मुझको बेध रहे हैं
अंतर्मन को छेद रहे हैं
इस वेदना का निदान क्या ?
उत्तर दो कान्हा !!
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आभार आदरणीय श्याम नारायण जी
सोचने को प्रेरित करती हुई सुंदर रचना बनी है आदरणीया मीना दी...
आपको हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति के लिए।
सादर
बहुत ही सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .. बधाई ......................... |
आदरणीय sharadindu mukerji जी आप को कानपुर की गोष्ठी मे मेरे द्वारा बोली गई रचना अब तक याद है इससे बड़ी उपलब्धि मेरे लिए और क्या हो सकती है |
इस रचना पर भी आप का जो स्नेह मिला उससे मै गौरवान्वित महसूस कर रहीं हूँ | आप का हृदयतल से आभार व नमन | सादर
आदरणीया अन्नपूर्णा जी, प्रिय गीतिका, प्रिय कल्पना जी आप सब का बहुत बहुत आभार | सस्नेह
आदरणीया मीना पाठक जी, मैं समझता हूँ आपकी यह रचना और वह जो आपने कानपुर में जनवरी में आयोजित गोष्ठी में सुनाई थी, संवेदन के एक ही सूत्र में पिरोए हुए हैं. हमारे देश में नारी के प्रति जो अनाचार हुआ है और निरंतर हो रहा है वह यहाँ के पुरुषवर्ग के चारित्रिक अध:पतन और दुर्बलता का प्रतीक है. जब जन-प्रतिनिधि जन सभाओं में खुले आम ऐसी बातें करते हैं जिससे भारतीय पुरुष के एक वर्ग का निकृष्टतम रूप उभरकर सामने आता है तब यही लगता है कि नारी को...भारत ही नहीं, पूरे विश्व में....'शक्तिरूपेण संस्थिता' होना पड़ेगा. इस विचार से आदरणीया कल्पना रामानी जी से मैं पूरी तरह सहमत हूँ. आपकी रचना से ऐसी प्रतिक्रिया का जन्म हुआ यह आपकी सफलता है. अभिनंदन और शुभकामनाएँ. सादर.
मीना दी सभी ने बहुत कुछ कह दिया । मैं भी उसी से सहमत हूँ बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिए ॥ सादर
बहुत खूब आ0 मीना दी ! इन प्रश्नो के उत्तर यदि कान्हा के पास होता तो वह उस समय ही क्यों मौन रहते ? सभी झुके सरों ने खामोश स्वीकृति शामिल थी ऐसा प्रतीत होता है
रचना सराहने हेतु बहुत बहुत आभार आ० कल्पना दी | सादर
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