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ग़ज़ल '' चाँद भी अब साँवला हो जायेगा '' - ( गिरिराज़ भंडारी )

2122     2122     2122       212

क्या मुआफी मांग इंसा यूँ भला हो जायेगा

एक अच्छाई से दानव,  देवता हो जायेगा ?

 

खूब घेरी चाँद को , बेशक हज़ारों बदलियाँ

क्या लगा ये ? चाँद भी अब साँवला हो जायेगा

 

जिस तरह से धूप अब अठखेलियाँ करने लगी

सच अगर तू देख लेगा , बावला हो जायेगा

 

थोड़ा डर भी है सताता इस जमे विश्वास को

पर कभी लगता, चमन फिर से हरा जो जायेगा

 

हौसलों को तुम अमल में भी कभी आने तो दो

सिर्फ़ बातें ही करोगे , बोथरा हो जायेगा

 

आज फूलों को मसलता घूमता है, कल वही

आपकी खामोशियों से जाने क्या हो जायेगा

 

अर्श पे बैठे हुवों को जानना होगा ज़रूर

आज जो कुछ वो करेंगे , कायदा हो जायेगा

 

चंद दाने छीट दो तुम पंछियों के वास्ते

वरना गुम्बद कुछ दिनों में बेसदा हो जायेगा 

 

चाँद की इन कोशिशों से आप रंजीदा न हों

रोज़ थोड़ा बढ़ रहा है तो बड़ा हो जायेगा

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment

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Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 16, 2014 at 4:26pm

आदरणीय गिरिराज जी.
अच्छी ग़ज़ल कही है..बहुत बहुत मुबारकबाद

Comment by इमरान खान on April 16, 2014 at 3:54pm
बहुत उम्दा और बेहतरीन गज़ल हुई है गिरिराज जी, दाद कबूल करें।

/खूब घेरी चाँद को/ ये मुझे व्याकरण के हिसाब से गलती लग रही है। यहाँ मेरे ख्याल से 'घेरें' होना चाहिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2014 at 1:42pm

आदरणीय आशुतोष भाई , सराहना के लिये आपका आभार! वो मिसरा सच मे बेबह्र  है, अभी सुधार रहा हूँ !! ध्यान दिलाने का शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2014 at 1:40pm

आदरनीया राजेश जी , गज़ल की सराहाना के लिये आपका तहे दिल से आभार !! अंतिम शे र मे मै चान्द की धीरे धीरे बढ़्ती कलाओं की धीमी गति से निराश न होने के लिये कह रहा हूँ , कि अगर धीमी ही सही लगातार प्रगति हो तो एक दिन पूर्ण्ता प्राप्त हो जाती है ! शायद आपको समझा सका हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2014 at 1:36pm

आदरणीय , चन्द्र शेखर भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥ आदरनीय वो मिसरा बेबह्र हो गया है , सुधार रहा हूँ , आपका शुक्रिया !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 12:54pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ....यहाँ मैं थोडा दुबिधा में हूँ ...क्या सोचते हो ?

जिस तरह से धूप अब अठखेलियाँ करने लगी

सच अगर तू देख लेगा , बावला हो जायेगा

आज फूलों को मसलता घूमता है, कल वही

आपकी खामोशियों से जाने क्या हो जायेगा....बेहतरीन ग़ज़ल के सभी शेर मुझे पसंद आये.मेरी तरफ से हार्दिक बधाई के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2014 at 11:25am

आदरणीय गिरिराज जी बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल दिली बधाई आपको सभी अशआर प्रभावित करते हैं ,बस अंतिम शेर के भाव समझ नहीं पाई 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 16, 2014 at 10:48am

वाह्ह क्या गजल है गिरिराज सर, बहुत उम्दा, एक जगह या तो जल्दबाजी में या टाइपिंग मिस्टेक से कुछ गलती प्रतीत हो रही है, - 

क्या सोचते हो ? चाँद भी अब साँवला हो जायेगा// 

इसे देख लें और बेहतरीन ज़मीन और कहन के लिए दिली दाद कुबुलें।

 

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