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ग़ज़ल ‘ ऐसा दिया है ज़हर ‘ --- 'चिराग'

221 2121 1221 212

 

बाज़ारे-इश्क़ सज गया पूरे उफान पर

शीला का नाम चढ़ गया सबकी ज़बान पर

 

धंधे की बात कीजिए कच्ची कली भी है

क्या कुछ नहीं मिलेगा मेरी इस दुकान पर

 

मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में

रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर

 

कूंचे में आए हुस्न का बाज़ार देखने

चोरी से देखते है सभी इक निशान पर

 

रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने

करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान पर

 

घायल हो जिसके प्यार में उसको कहाँ ख़याल

ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर

 

उल्फत का खेल संग मेरे खेलकर 'चिराग'

ऐसा दिया है ज़हर की बन आई जान पर

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 4:40pm

आदरणीय नादिर साहेब
वक़्त देने और हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
उम्र अब --२२
ध्यान अपना- --२२१

Comment by नादिर ख़ान on April 17, 2014 at 4:18pm

 अच्छी कोशीश हुयी है आदरणीय चिराग जी, आपकी  मेहनत दिख रही है ।

अशआर कुछ और वक्त माँग रहे है 

मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में

रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर 

घायल हो जिसके प्यार में उसको कहाँ ख़याल

ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर  ...फिर एक बार वज्न चेक  कर लीजिये शायद हम ठीक से गिन नहीं प रहे हैं ।

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 4:04pm

आदरणीय अनुराग जी
हौसला अफज़ाई के लिए आपका शुक्रिया

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 17, 2014 at 3:25pm

वाह क्या कहने बहुत लाजवाब ग़ज़ल हुई है सभी शेर धारदार हैं बहुत बहुत बधाई चिराग जी

सादर

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 11:56am

आदरणीय जितेंद्र जी
ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया
ख़ास दाद देने के लिए आपका अहसानमंद हूँ
बहुत बहुत

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 11:54am

आदरणीय भुवन भाई जी
ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 11:53am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 17, 2014 at 11:46am

मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में

रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर..............वाह! बहुत खूब, बहुत जोर का प्रहार 

बधाई आपको आदरणीय मुकेश जी

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:26am

आ. चिराग भाई क्या कहने, इस अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 11:23am

भाई चिराग एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

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