221 2121 1221 212
बाज़ारे-इश्क़ सज गया पूरे उफान पर
शीला का नाम चढ़ गया सबकी ज़बान पर
धंधे की बात कीजिए कच्ची कली भी है
क्या कुछ नहीं मिलेगा मेरी इस दुकान पर
मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में
रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर
कूंचे में आए हुस्न का बाज़ार देखने
चोरी से देखते है सभी इक निशान पर
रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने
करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान पर
घायल हो जिसके प्यार में उसको कहाँ ख़याल
ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर
उल्फत का खेल संग मेरे खेलकर 'चिराग'
ऐसा दिया है ज़हर की बन आई जान पर
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय नादिर साहेब
वक़्त देने और हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
उम्र अब --२२
ध्यान अपना- --२२१
अच्छी कोशीश हुयी है आदरणीय चिराग जी, आपकी मेहनत दिख रही है ।
अशआर कुछ और वक्त माँग रहे है
मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में
रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर
घायल हो जिसके प्यार में उसको कहाँ ख़याल
ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर ...फिर एक बार वज्न चेक कर लीजिये शायद हम ठीक से गिन नहीं प रहे हैं ।
आदरणीय अनुराग जी
हौसला अफज़ाई के लिए आपका शुक्रिया
वाह क्या कहने बहुत लाजवाब ग़ज़ल हुई है सभी शेर धारदार हैं बहुत बहुत बधाई चिराग जी
सादर
आदरणीय जितेंद्र जी
ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया
ख़ास दाद देने के लिए आपका अहसानमंद हूँ
बहुत बहुत
आदरणीय भुवन भाई जी
ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया
मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में
रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर..............वाह! बहुत खूब, बहुत जोर का प्रहार
बधाई आपको आदरणीय मुकेश जी
आ. चिराग भाई क्या कहने, इस अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई...
भाई चिराग एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
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