बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है
तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है
अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है
किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता
जो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है
तेरी नज़रों से मैं कुछ भी छुपा सकता नहीं हमदम
बदन से रूह तक तेरे लिए सबकुछ नुमाया है
कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था
बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जो मेरे दिल रहता है हमेशा, वो पराया है----मेरे जो दिल में रहता है कर लीजिये ...
बस इसी शेर में यहाँ अटकाव लगा बाकि जबरदस्त ग़ज़ल हुई है तहे दिल से बधाई आ० धर्मेन्द्र जी
बेहतरीन ..बेहतरीन ग़ज़ल कही है जनाब ..बहुत सुन्दर अशआर पिरोये हैं ..! उम्दा
अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है....बहुत खूब आदरणीय
अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
मतला और आखिरी शेर ने बहुत प्रभावित किया आदरणीय धर्मेन्द्र सर
वाहहहहहहह वाहहहहहहह खूबसूरत अन्दाजे बयाँ है जनाब वाहहहहह
अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है
बहुत खूब खूब सूरत गज़ल बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , खूब सूरत गज़ल कही है , आनेकों बधाइयाँ आपको !!
किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता
जो मेरे दिल (में) रहता है हमेशा, वो पराया है
बेहद शानदार भाई साहब।
अादरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी हृदयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है
तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है
अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है
क्या कहने !
कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था
बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है..............बहुत बहुत खूब ! दिल को छू गया
दिली बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय धर्मेन्द्र जी
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