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ग़ज़ल : तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है

तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है

अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है

तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है

किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता

जो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है

तेरी नज़रों से मैं कुछ भी छुपा सकता नहीं हमदम

बदन से रूह तक तेरे लिए सबकुछ नुमाया है

कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था

बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 20, 2014 at 12:14pm

जो मेरे दिल रहता है हमेशा, वो पराया है----मेरे जो दिल में रहता है कर लीजिये ...

बस इसी शेर में यहाँ अटकाव लगा बाकि जबरदस्त ग़ज़ल हुई है तहे दिल से बधाई आ० धर्मेन्द्र जी 

 

Comment by Saarthi Baidyanath on April 20, 2014 at 11:17am

बेहतरीन ..बेहतरीन ग़ज़ल कही है जनाब ..बहुत सुन्दर अशआर पिरोये हैं ..! उम्दा 

अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है

तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है....बहुत खूब आदरणीय 

Comment by vijay nikore on April 20, 2014 at 8:45am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by vandana on April 20, 2014 at 6:21am

मतला और आखिरी शेर ने बहुत प्रभावित किया आदरणीय धर्मेन्द्र सर 

Comment by umesh katara on April 19, 2014 at 8:43pm

वाहहहहहहह वाहहहहहहह खूबसूरत अन्दाजे बयाँ है जनाब वाहहहहह

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 19, 2014 at 5:02pm

अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है

तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है

बहुत खूब  खूब सूरत गज़ल बधाई स्वीकार करें । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 1:53pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , खूब सूरत गज़ल कही है , आनेकों बधाइयाँ आपको !!

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on April 19, 2014 at 1:12pm

किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता
जो मेरे दिल (में) रहता है हमेशा, वो पराया है

बेहद शानदार भाई साहब।

Comment by Krishnasingh Pela on April 19, 2014 at 7:22am

अादरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी हृदयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । 

महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है

तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है

अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है

तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है 

क्या कहने ! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2014 at 11:09pm

कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था

बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है..............बहुत बहुत खूब ! दिल को छू गया

दिली बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय धर्मेन्द्र जी

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