2122 1212 112
इश्क में जायेगी ये जान भी क्या
सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या
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ठोकरें हमको कर गयीं हैरां
आपने बदली है जबान भी क्या
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गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
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चाँद देखा था रात सहमा सा
'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'
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काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
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फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या
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एक जुम्बिश हुयी है दिल में कहीं
ज़िक्र में आई मेरी जान भी क्या
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मौलिक/ अप्रकाशित
संशोधित
Comment
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काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
बहुत खूब ,, बधाई
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या.....................बहुत खूब ,, बधाई | सस्नेह
आ० कल्पना दीदी!
आपके स्नेहसिक्त आशीष को पाकर धन्य हुयी हूँ|
आपकी बताई हुयी राह के लिए ह्रदय से आभारी हूँ| इस शेर के अर्थ बदलाव को लेकर जिस पशोपेश से गुजर रही थी, वह मुश्किल हल हो गयी|
सादर वेदिका
आपका हार्दिक आभार आ0 अमित जी!
Bahut khoob gitika ji
आदरणीया गीतिका जी , बहुत सुन्दर गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या ---- बहुत खूब , ढेरों बधाइयाँ ॥
वाह,वाह!! बहुत समय बाद आप दिखी है वो भी इतनी सुंदर गज़ल के साथ! बहुत बहुत बधाई आपको...
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या....बहुत खूबसूरत
नज्र में गिर के कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या....इस शेर को अगर नीचे दिये अनुसार कहें तो ....
गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
वाह ..... बहुत खूब... खूबसूरत ग़ज़ल की बधाई आदरनिया गीतिका जी
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