खुदा के घर से किसी के दिल पर ,
ना हिन्दू ना मुसलमान की छाप लगकर आयी है ,
फिर क्यूँ तुमने हमपर जाती की तोहमत लगाई है ,
खुदा का वास्ता -
अब, ना हिन्दू ना मुसमान ना ईसाई बना हमको ,
इंसानियत हमारी ज़ात हैं ,कुछ और ना बना हमको
दिल जिगर गुर्दे ,तुम भी रखते हो ,हम भी रखते हैं ,
चाहो तो जंग के मैदान में आजमा सकते हो ,
और अगर चाहो तो -
ज़रूरतमंद को दान कर इंसान और इंसानियत ,
दोनों को बचा सकते हो
अप्रकाशित मौलिक
Comment
बहुत ही सुंदर संदेशात्मक भावाभिव्यक्ति बधाई आपको
बहुत सुंदर सन्देश
बहुत सुंदर सार्थक सन्देश, बधाई आदरणीय दिलीप जी
आदरणीय , अच्छी क्षणिकाओं की रचना की है , बधाई !!
आदरणीय दोनों ही क्षणिकाओं के भाव बहुत ही गहन हैं कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं सुधार लें. इस रचना पर बधाई स्वीकारें.
आपके सुन्दर विचारों को नमन
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