भारत हमारा
(कामरूप छंद)
भारत हमारा, देश न्यारा, सृष्टि का उपहार।
तहजीब अपनी, गंग जमुनी, नाज जिसपर यार।।
सीख दे ममता, और समता, कर्म गीता सार ।
जनतंत्र आगर, विश्व नागर, मानता संसार।।
सत्यनारायण सिंह
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
परम आदरणीय आपके मार्गदर्शन में यह प्रयास संभव हुआ है अतएव आपका सादर आभार
संयत प्रयास के लिए बधाई आदरणीय..
कामरूप छंद पर बहुत खूबसूरत प्रयास..
आतंरिक गेयता भी देखते ही बनती है
हार्दिक बधाई इस सुन्दर सार्थक प्रस्तुति पर
आ, अखिलेश जी रचना की सराहना एवं बधाई हेतु आपका सादर आभार आदरणीय
आ. सत्यनारायण जी
सुंदर छंद , हार्दिक बधाई
आ. जीतेन्द्र जी रचना सुन्दर लगी यह पढ़कर मन को सुखकर लगा आपका सादर आभार.
आ. गिरिराज जी रचना की सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय
आ. अरुण जी बधाई एवं प्रोत्सह्न हेतु आपका ह्रदय से आभार
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