याद तेरी आविनाशी!
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
मिलन तुम्हारा बारहमासी
कभी लगा ना उबासी
यादें तव मन मंदिर जग गयी
अलखन जगे जिमि काशी
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
संग तुम्हारा था मधुमासी
मन ना छायी उदासी
चाँद सितारों में जा बस गयी
मधुर हँसी की उजासी
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
मेरी दुनिया प्रेम पियासी
रसमयी बात विलासी
छंद गीत कविता में ढल गयी
याद तेरी आविनाशी!
-सत्यनारायण सिंह
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सादर आभार आदरणीया डॉ. प्राची जी
एक अलग तरह की प्रस्तुति
विरह संवेदना को खूबसूरती से जिया है
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
आ. लडिवाला जी सादर प्रस्तुति पर आपकी सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय
प्रस्तुति पर आपकी बधाई एवं प्रोत्साहन हेतु आपका हृदय से सादर आभार प्रकट करता हूँ आदरणीय डॉ. आशुतोष जी
प्रस्तुति पर आपकी टिपण्णी से अभिभूत हूँ आदरणीया कुंती जी सादर आभार
छंद गीत कविता में ढल गयी
याद तेरी आविनाशी --------- वाह ! बहुत खूब
भावो से परिपूर्ण इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
बहुत ही भावपूर्ण प्रेम के प्रति समर्पित रचना....हार्दिक बधाई.
आदरणीय गिरिराज भाई प्रस्तुति पर आपकी उत्साहित करती टिपण्णी एवं बधाई हेतु आपका दिल से आभारी हूँ आदरणीय
प्रस्तुति पर आपकी बधाई एवं प्रोत्साहन हेतु आपका हृदय से सादर आभार प्रकट करता हूँ आदरणीय जितेन्द्र जी
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