(1)
मत अपना कर्तव्य है , मत अपना अधिकार
एक - एक मत से बनें , मनचाही सरकार
मनचाही सरकार , चुनें प्रत्याशी मन का
मन जिसका निष्पाप, चहेता हो जन-जन का
क्षणिक लाभ का लोभ, मिटा देता हर सपना
हो कर हम निर्भीक , हमेशा दें मत अपना ||
(2)
झूठे निर्लज लालची , भ्रष्ट और मक्कार
क्या दे सकते हैं कभी, एक भली सरकार
एक भली सरकार, चाहिए - उत्तम चुनिए
हो कितना भी शोर,बात मन की ही सुनिए
मन के निर्णय अरुण , हमेशा रहें अनूठे
देते मन को ठेस, लालची निर्लज झूठे ||
(3)
लोकतंत्र का पर्व यह, है हम सबकी शान
बिना किसी से भी डरे , करें सभी मतदान
करें सभी मतदान , देश को दें मजबूती
दुनियाँ भर में अरुण, बजे अपनी ही तूती
मिलजुल करिये जाप,हमेशा कर्म-मन्त्र का
है हम सबकी शान, पर्व यह लोकतंत्र का ||
(मौलिक तथा अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुंदर सार्थक सन्देश देती कुंडली रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण निगम जी
आदरणीय श्री अरुन कुमार निगम जी
सादर
आदरणीय अशोक जी आप और मै ?
सुन्दर प्रस्तुति .
दिशा निर्देश प्रदान करती.
मन की सुनो .
वाह
बधाई .
सुन्दर रचना....हार्दिक बधाई.
सुन्दर कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई .............. |
आ० अरुण निगम जी बहुत सुन्दर सम सामयिक,सार्थक सन्देश देती हुई कुण्डलियाँ लिखी हैं पहली में सार्हक सुझाव ,दूसरी में सरकार के रवैये के प्रति खूब आक्रोश प्रकट किया है अंतिम में अपने अधिकार के प्रति जागरूकता प्रकट की है,आपको हार्दिक बधाई ,हाँ एक बात का संशय है की जहाँ आपने अपने नाम का प्रयोग किया है अरुण उसकी मात्राएँ लघु लघु लघु =111 होगी फिर आप उसे गुरु लघु में कैसे बाँध रहे हैं यहाँ मुझे संशय है कृपया संशय दूर करें
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