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गज़ल -- ' व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है '( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122  

लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है

हाँ, सहारा दो तो वो भी दौड़ता है

 

व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है  

कौन कैसा क्यों है, ये किसको पता है

 

दानवों सा इस जगह जो लग रहा है

सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है

 

सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम

मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है

 

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है

 

उनकी क़समों का भरोसा क्या करुं मै

राज अपने कौन किसपे खोलता है

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2014 at 3:55pm

उनकी क़समों का भरोसा क्या करुं मै

राज अपने कौन किसपे खोलता है.............वाह ! वाह!

आदरणीय गिरिराज जी सादर, बढ़िया गजल कही है सभी अशआर अच्छे हैं. बहुत-बहुत बधाई!

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 24, 2014 at 3:13pm

आदरणीय गिरिराज जी

बहुत सुन्दर ग़ज़ल

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है

Comment by savitamishra on April 24, 2014 at 1:16pm

बहुत ही सुन्दर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 24, 2014 at 11:45am

सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम

मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है----शानदार अशआर हुआ ...सटीक भाव 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आ० गिरिराज जी तहे दिल से दाद कबूलिये. 

 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2014 at 11:36am

अच्छे अश’आर हुए हैं गिरिराज जी। दाद कुबूल कीजिए। ये शे’र विशेष

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 24, 2014 at 10:03am

लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है

हाँ, सहारा दो तो वो भी दौड़ता है............... सच्चे  सहारे  को बयां करता हुआ मतला

 

व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है  

कौन कैसा क्यों है, ये किसको पता है...............आज का सत्य, जब हर इंसान अवसरवादी है यहाँ

 

दानवों सा इस जगह जो लग रहा है

सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है...............यह शायद समझने वाला ही समझ सकता है

 

सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम

मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है..............बहुत गहरा दृष्टिकोण

 

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है....................सफल जीवन का मंत्र, लोगो की सुनो तो स्वयं परेशानी मोल लेलो

आपने अपने जीवन के अनुभव को बहुत सुन्दरता से गजल के शेरों में बयां किया है आपकी लेखनी को नमन आदरणीय गिरिराज जी, तहे दिल से बधाइयाँ स्वीकार कीजियेगा

सादर!

 

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