मेरी आँखों से
सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे
रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा
सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा
देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में
मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा
पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा
रिश्तें नातें प्यार की बातें ,इनको खूब सिसकते देखा
नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा
( मौलिक और अप्रकाशित)
मदन मोहन सक्सेना
Comment
आप सभी का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए
रिश्तें नातें प्यार की बातें ,इनको खूब सिसकते देखा
नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा.....सुन्दर अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. मदन मोहन जी
बहुत सुन्दर कहन..इस अभिव्यक्ति का
जीवन के प्रांगण में ऐसी दो-रंगी तस्वीर जहां तहां दिखलाई पड़ती है.. आपने ख़ूबसूरती से शब्दबद्ध किया है
थोड़ा सा और प्रयास करके ये रचना आसानी से ग़ज़ल का रूप ले सकती है..
इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें
पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा....बहुत खूब
सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा
देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में
मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा
मदन मोहन भाई जबरदस्त कटाक्ष करती और आज के हालात दिखाती अच्छी रचना
भ्रमर ५
सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा..बहुत सही ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ..सादर
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