“मालिक..! मुझे एक माह की छुट्टी चाहिए थी, बहुत जरुरी काम आन पड़ा है.. या हो सके तो एक नये नौकर की जुगाड़ भी कर के रखना.हुआ तो लौटकर काम पर नहीं भी आऊँ ” रोज अपने कान के ऊपर से बीड़ी निकाल के पीने वाले रामू ने, आज सिगरेट का कस खींचते हुए कहा
“अरे भाई..यहाँ पूरा काम फैला पड़ा है और तू है कि एक माह की छुट्टी की बात कर रहा है, ऐसा क्या काम आ गया ..? कि तू काम भी छोड़ सकता है “ गजाधर ने बड़े परेशान होकर पूछा
“ वो काम यह है कि मेरी ससुराल वाला गाँव, बाँध की डूब में आने वाला था. तो पिछले साल मैं भी वहां एक झोंपड़ी बना आया था. जिसका मुआवजा मिल सकता है. अब सरकारी काम-काज है समय का क्या ठिकाना कितना लग जाय..? ” अपनी बात कहते हुए रामू ने आधी सिगरेट बुझाकर अपने कान के ऊपर दबा ली थी
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शुभ्रांशु जी , आप बिना काम के लाभ की बात कर रहे है अभी तो झोपडा बनाकर तीर चलाया है निशाने पर लगेगा तभी तो कुछ मिलेगा. रचना पर आपकी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर !
आपकी प्रतिक्रिया // मानव की प्रकृति और प्रवृति के विशिष्ट कोण का अच्छा चित्रण// से रचना को सार्थकता का प्रमाण मिलता है आदरणीय विजय ज़ी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ।
सादर !
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय डा.आशुतोष जी , स्नेह बनाये रखियेगा
सादर !
यहाँ से वहाँ से ले - इधर से ले उधर से ले। बेईमानी का पैसा आजकल हर वर्ग चाहता हैऔर सब को फलता भी है, भारत के अमीरों को और भी ज़्यादा ........ देखो और उनसे सीखो
हार्दिक बधाई लघु कथा की
एक गरीब के लिए मुआवजा मजबूरी है, पर उसे कभी मिल नहीं पाता. गरीब न तो कामचोर होता है, न ही शातिर! मुआवजा कभी इतना नहीं मिलता कि उसके लिए कोई गरीब नौकरी छोड़ दे! इस कथा से एक अभिजात्य वर्गीय सोच की बू आ रही है.
कथ्य के हिसाब से लघुकथा बहुत कमजोर है!
इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई!
बहुत सुन्दर कथा...
बैठ कर पैसा कमाने और बिना काम के भत्ता लेने से किसका कितना लाभ होता है?
यह लघु कथा मानव की प्रकृति और प्रवृति के विशिष्ट कोण का अच्छा चित्रण कर रही है। बधाई।
शौक बदल सकते हैं आदत नहीं ..इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
हार्दिक आभार आपका आदरणीया सविता जी
सादर!
बढ़िया व्यंग
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