मुहब्बतों की ज़मीन पर ....
वो जागती होगी
यही सोच हम तमाम शब सोये नहीं
चुरा न ले सबा नमीं कहीं
हम एक पल को भी रोये नहीं
वो रुख़्सत के लम्हात,वो अधूरे से जज़्बात
बंद पलकों की कफ़स में कैद वो बेबाक से ख्वाब
क्या वो सब झूठ था
क्यों पल पल के वादे हकीकत की धूप में
हरे होने से पहले ही बेदम हो कर झरने लगे
अटूट बंधन के समीकरण बदलने लगे
खबर न थी कि हमारी खुद्दारी
हमें इस मकाम तक ले आएगी
इज़हार और इकरार की तकरार में मुहब्बत
कच्ची मिट्टी सी हार जाएगी
हमारी ही खुद्दारी हमारी ज़बीं पे अलम तराश जाएगी
अज़ल के लिबास में हर ख़्वाहिश दम तोड़ जाएगी
मुहब्बत के ताबूत पे वक्त की सुई
खुद्दारी का हश्र लिख जाएगी
हाथों में तड़पते लम्स को बिछुड़ी हयात का दर्द समझा जाएगी
मुहब्बतों की ज़मीन पर खुद्दारी अपने अहं से कतरायेगी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय भाई सुशील जी , एक भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई .
इज़हार और इकरार की तकरार में मुहब्बत
कच्ची मिट्टी सी हार जाएगी
क्या खूब कहा .................
खबर न थी कि हमारी खुद्दारी
हमें इस मकाम तक ले आएगी
इज़हार और इकरार की तकरार में मुहब्बत
कच्ची मिट्टी सी हार जाएगी......................बहुत सुंदर .बधाई आदरणीय शुशील जी
आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाई ॥
वो जागती होगी
यही सोच हम तमाम शब सोये नहीं
चुरा न ले सबा नमीं कहीं
हम एक पल को भी रोये नहीं.....बहुत खूब.
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