2122 2122
दस्तो बाज़ू खोल लें क्या
फिर परों को तोल लें क्या
शब्दों में धोखे बहुत हैं
मौन में ही बोल लें क्या
दोस्त के क़ाबिल नहीं वो
दुश्मनी ही, मोल लें क्या
और कितना हम लुटेंगे
हाथ में कश्कोल लें क्या ------ कश्कोल - भिक्षापात्र
दिल हमारा ,साफ है तो
रंग, कुछ भी घोल लें क्या
नीम है , हर बात उनकी
हम ही मीठा ,बोल लें क्या
ठीक है, प्यारी बहुत हो
अब बजाने ,ढोल लें क्या
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
छोटी बह्र ..बड़ा असर ..वाह वाह और वाह
आदरणीय सत्य नारायण भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
शानदार एवं उम्दा गज़ल कही है आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकार करें
दिल हमारा ,साफ है तो
रंग, कुछ भी घोल लें क्या.................. बहुत खूब
आदरणीय नीरज नीर भाई , आपका आभार ॥
आदरणीय तिलक राज भाई , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया मेरे लिये तमगे के समान है , आपका हार्दिक आभार ॥
आदरनीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से आनंदित हूँ , उत्साहित हूँ , आपका तहेदिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय अरुण भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल .. बहुत बहुत बधाई..
बस यही तो ग़ज़ल है। खूबसूरती से दिल की दिल की बात।
अहा ! वाह वाह !
छोटे बह्र में बड़ी ग़ज़ल.. .
बहुत खूब आदरणीय गिरिराजजी.
सादर
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