बह्र : २१२२ २१२२ २१२२
कामयाबी चाहिए तो पाँव ढूँढो,
पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो।
शहर से जो माँग लोगे वो मिलेगा,
शर्त इतनी है यहाँ मत गाँव ढूँढो।
जीत लोगे युद्ध सब, इतना करो तुम,
जो न हो नियमों में ऐसा दाँव ढूँढो।
दौड़ते रहना, यहाँ जिन्दा रहोगे,
भीड़ में मत बैठने को ठाँव ढूँढो।
नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,
और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।
-
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
very nice ghazal
वाह बहुत खुबसूरत
खूब निभाया काफिया
वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
क्या बात है ... लाजवाब
बहुत सुन्दर गजल। ढेरों दाद कुबूल करें। सादर |
नभ मिलेगा गर करो हल्का स्वयं को ---
वाह शुभान अल्लाह i अति सुन्दर i
वाह आदरणीय धर्मेन्द्र जी, सफल जीवन के लिए श्लोकों की तरह हर अश'आर परिपक्वता से भरा हुआ, हार्दिक बधाइयाँ.......
niceee prastuti
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