तुम और मैं कितनी सदियों से
हाँ, कितने जन्मों से,
कितने चेहरे और रूप लिये
कभी भूले से, कभी अंजाने से.
एक युग में कभी तृण बन के
अमृत जल से बरसे कहीं,
नभ में तारे बन के चमके कभी
कितनी कहानियाँ सुनी अनसुनी रहीं.
किसका सफ़र था जो हवा बन के
गुज़र रहा था पात पात
एक गुलाब खिला था वन में
कुछ महक थी बसी मकरंद में.
एक एहसास था मन के कोने में
वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,
कितने बसेरे मिले थे पहचाने से
पर तुम बिन था कहाँ ठहराव.
हमारे पथ दिखते थे समतल
पर हम चलते अलग-थलग थे,
उत्तर-दक्षिण के विपुल आकर्षण में
अदृश्य डोर से बंधे हुए थे.
कवियों की कही सबने मानी
एक सच्चाई थी थोड़ी सी,
समझा कौन, किसने समझाया
लम्बी कहानी बस इतनी सी.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
नैसर्गिक सत्ता इकाइयों के अनुरूप चलती हुई भी सार्वभौमिक स्वरूप को जीती है. जड़-चेतन से रुपायित मानवीय व्यवहार संवेदना के स्तर पर कितना सर्वसमाही हुआ करता है !
आपकी कविता अपने बिम्बों के माध्यम से शाश्वत समृद्धियों को संजोती है. और प्रेम का कोमल स्वरूप दृढ़वत उत्साह के साथ साझा होता है.
समझा कौन, किसने समझाया
लम्बी कहानी बस इतनी सी.
वाह . क्या कहा है आपने !
आपकी प्रस्तुत कविता की दशा को हर जीनेवाला जीता है. और ऊर्जस्वी होता जाता है. आपकी अभिव्यक्ति का समर्थन सभी प्रेमियों को मिले.
हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया.
आदरणीया कुंती जी ..अध्य्त्मिकता का पु ट लिए हुए इस शसक्त और गंभीर रचना के लिए आपको तहे दिल बधाई सादर
बहुत ही बढ़िया रचना !! आ0 कुंती दीदी बधाई स्वीकारिए ।
कवियों की कही सबने मानी
एक सच्चाई थी थोड़ी सी,
समझा कौन, किसने समझाया
लम्बी कहानी बस इतनी सी............................बहुत सुन्दर .. नमन आप को दी | सादर
बहुत खूबसूरत कमाल की रचना है बहुत बहुत बधाई आपको
कुछ कहानियां कभी खत्म नही होतीं ! अच्छा भी है कि जीवन हमेशा कहानियों सा सरल और प्रवाह मय बना रहे ! :-)))))))
एक एहसास था मन के कोने में
वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,
कितने बसेरे मिले थे पहचाने से
पर तुम बिन था कहाँ ठहराव..........................सुंदर,मन को छू जाते हुए भाव. हार्दिक बधाई आदरणीया कुंती जी
किसका सफ़र था जो हवा बन के
गुज़र रहा था पात पात
एक गुलाब खिला था वन में
कुछ महक थी बसी मकरंद में.
एक एहसास था मन के कोने में
वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,
कितने बसेरे मिले थे पहचाने से
पर तुम बिन था कहाँ ठहराव.---वाह वाह बहुत सुन्दर प्रभाव शाली पंक्तिया ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई आपको आ० कुंती जी
तुम और मै के जन्म जन्मान्तर सम्बन्ध के प्रति निश्चित आश्वस्ति और भरोसे को इस कामना के साथ प्रणाम कि यही सच हो iआदरणीया i
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