गोधूली में
बहुत ही कोमल स्वर में
दर्द से भरे हुए,
सूरज जब डूब रहा होता है
मैं जानती हूँ ज़िंदगी!
तुम मेरे लिये गाती हो.
छत से सूखे कपड़े उठाती हुई
बेचैन
मैं ठिठक जाती हूँ.
कुछ पल, कुछ अनबूझे सवाल
मंडराते हैं मेरे आस पास
चिड़ियों की तरह
जो दाना चुगकर, गाना गाकर
लौट जाते हैं अपने घोंसले में.
सांझ
रह जाती है कुँवारी
रात घिर आती है ज़मीं पर
गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध
और-
पसर जाता है सरसों के खेत में.
आधी रात
फिर लहराता है हवा के साथ
तुम्हारा दर्द भरा गान
सुबह की बेला में कुनमुनाती है जूही
ओस से भीगा गुलाब
खिलने को आतुर
छुप जाती है छुई मुई बाग के कोने में.
दिन
एक तितली उड़ती है
लेती है ज़िंदगी कई करवटें
आते हैं कितने आंधी और तूफ़ान
अक्सर होती है बिन बादल बरसात
घरेलू कामों से फ़ुरसत पाकर
आती हूँ आंगन में
बटोरती हूँ कल के लिये
जीवन के कुछ सामान
दूर बज उठती हैं
पशुओं के गले की घंटी
टुन-टुन करती
खुरों की टापों में मिल जाती है
तुम्हारी परिचित आवाज़
व्यस्त हो उठती हूँ
घर वापसी की बेला है.
तुम गाते हो अनवरत
मैं ढूँढ़ती रहती हूँ तुम्हें –
वक़्त की सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते
ज़िंदगी
रुकती है कब्र की दहलीज पर
सहसा
एक मौन वशीकरण लिए
तुम्हारा सुर मधुर हो उठता है
जीवन की गोधूली में.
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
प्रतीक्षा के स्वरूप को कितने सुन्दर शब्द मिले हैं ! भावनाओं को कैसा सुन्दर विस्तार मिला है.
बधाई आदरणीया.
रचना के लिये हार्दिक बधाई सुन्दर प्रस्तुति,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
चिड़ियों की तरह
जो दाना चुगकर, गाना गाकर
लौट जाते हैं अपने घोंसले में.
सांझ
रह जाती है कुँवारी
रात घिर आती है ज़मीं पर
गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध
और-
पसर जाता है सरसों के खेत में.
आधी रात
फिर लहराता है हवा के साथ
तुम्हारा दर्द भरा गान
सुबह की बेला में कुनमुनाती है जूही
ओस से भीगा गुलाब
खिलने को आतुर /////////////सुन्दर शब्द संचय। ......बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कुन्ती दी,,,,,,,,,,,,,, हार्दिक बधाई आपको
aadarniya di bahut hi sunder mugdh karti rachna bahut bahut badhai aapko, saadar
आदरणीया कुंती दी... लाजवाब रचना .. हिन्दी पर आप की जितनी पकड़ है हमारी नही | सादर बधाई स्वीकारें
शुज्जु बहुत अच्छा लगा आपकी बातें सुनकर. इससे प्ररणा मिलती है. आपको हृदय से आभार प्रकट करती हूँ.
आदरणीया कुन्ती जी लाजवाब अभिव्यक्ति है, एक बार आपने कहीं कहा था कि आप अहिंदी भाषी हैं ये आपके अंदर की ललक है, अपने आपको व्यक्त करने की आकांक्षा है जिसके चलते आपने हिन्दी भाषा सीखी, वाकई शब्द विन्यास लाजवाब है अपने मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से आपने शब्दों में उकेरा है। बहुत बहुत बधाई आपको
सुशील जी व कल्पना जी आपको हार्दिक आभार.
मैं जानती हूँ ज़िंदगी!
तुम मेरे लिये गाती हो.............. कुंती जी मनोहर रचना बहुत बधाई आप को /सादर
मैं ढूँढ़ती रहती हूँ तुम्हें –
वक़्त की सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते
ज़िंदगी
रुकती है कब्र की दहलीज पर
सहसा
एक मौन वशीकरण लिए
तुम्हारा सुर मधुर हो उठता है
जीवन की गोधूली में.……
अप्रतिम,अनुपम और भावों की गहनता लिये जीवन भावों को जीवंत करती इस रचना के लिये हार्दिक बधाई आदरणीया कुँती मुख़र्जी
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