गा कोयल गा...
गीत प्रेम के
गा कोयल.....
मन के सुप्त तारों को जगा.
प्रकृति के वक्ष के आर-पार
अनु विस्फ़ोटक के सप्त स्वर में
अपनी गायन शक्ति भर
तीव्र सुर में गा कोयल......
ग्रीष्म की तपती धूप है
कर बादलों का आह्वान
बादल कुछ ऐसा बरसे
तरल हो धरती का कण-कण
निकले सीप से मोती
सुख-समृद्धि की बरसात हो
गा कोयल.....
बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...
तू है तो गाता है जीवन
आकाश मुस्काता है
हवा बिखेरता कै प्राण
जड़-चेतन में
मंत्र फूँक ऐसा....
‘जीवमेव सरदः शतम् का.’
गा कोयल ......
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...
समयानुकूल बहुत ही प्यारी रचना सुन्दर सन्देश कोमल भाव बधाई हो आप को
आदरणीया कुंती जी जय श्री राधे
भ्रमर ५
//बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...//
अति सुन्दर प्रार्थना लिए आपकी रचना ने प्रभावित किया... आपको हार्दिक बधाई।
अच्छे दिनों की कल्पनाएँ करती सकारात्मक बिम्बों से सजी इस कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कुन्तीजी.
सादर शुभकामनाएँ.. .
अत्यंत भावपूर्ण रचना....
बादल कुछ ऐसा बरसे
तरल हो धरती का कण-कण
निकले सीप से मोती
सुख-समृद्धि की बरसात हो
गा कोयल.....
बहुत सुन्दर और प्यारी रचना
भमर ५
प्रिय साथियो! आप सभी को हार्दिक आभार.
आदरणीया coontee जी
कोयल का आलंबन लेकर आपने 'सर्वे भवन्तु सुखिनः ' का जो आह्वान किया है वह ह्रदय स्पर्शी है i शुभेच्छु i
अभिलाषाओं का ये दिवास्वप्न पूर्ण हो कोयल अपनी कूक से इस धरा की पीड़ा हरे ...बहुत सुन्दर लिखा है आ० कुंती जी ,बधाई आपको.
बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ......................आमीन :-) गा कोयल गा गीत प्रेम के
इतनी सुन्दर प्रस्तुति हेतु सादर बधाई स्वीकारें दी
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