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गा कोयल गा...
गीत प्रेम के
गा कोयल.....


मन के सुप्त तारों को जगा.

प्रकृति के वक्ष के आर-पार
अनु विस्फ़ोटक के सप्त स्वर में
अपनी गायन शक्ति भर
तीव्र सुर में गा कोयल......

ग्रीष्म की तपती धूप है
कर बादलों का आह्वान
बादल कुछ ऐसा बरसे
तरल हो धरती का कण-कण
निकले सीप से मोती
सुख-समृद्धि की बरसात हो
गा कोयल.....

बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...

तू है तो गाता है जीवन
आकाश मुस्काता है
हवा बिखेरता कै प्राण
जड़-चेतन में
मंत्र फूँक ऐसा....
‘जीवमेव सरदः शतम् का.’
गा कोयल ......
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 28, 2014 at 4:33pm

बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...

समयानुकूल बहुत ही प्यारी रचना सुन्दर सन्देश कोमल भाव बधाई हो आप को
आदरणीया कुंती जी जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by vijay nikore on June 9, 2014 at 6:06pm

//बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ...//

अति सुन्दर प्रार्थना लिए आपकी रचना ने प्रभावित किया... आपको हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 5:45pm

अच्छे दिनों की कल्पनाएँ करती सकारात्मक बिम्बों से सजी इस कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कुन्तीजी.

सादर शुभकामनाएँ.. .

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on June 8, 2014 at 10:49pm

अत्यंत भावपूर्ण रचना....

Comment by विजय मिश्र on June 7, 2014 at 5:58pm
यह सुमधुर गीत किसी मंगलाचरण से कम नहीं जो बिपन्नता में भी आशा ज्योत थामें कोयल के माध्यम से समूचे संसार को गाने के लिए उकसाती है | अनेक साधुवाद कुंतीजी|
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 5, 2014 at 10:53pm

बादल कुछ ऐसा बरसे

तरल हो धरती का कण-कण

निकले सीप से मोती

सुख-समृद्धि की बरसात हो

गा कोयल.....

बहुत सुन्दर और प्यारी रचना
भमर ५

Comment by coontee mukerji on June 5, 2014 at 5:00pm

प्रिय साथियो! आप सभी को हार्दिक आभार.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 12:12pm

आदरणीया  coontee जी

कोयल का आलंबन लेकर आपने  'सर्वे भवन्तु सुखिनः ' का जो आह्वान किया है वह ह्रदय स्पर्शी है  i  शुभेच्छु i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2014 at 11:06am

अभिलाषाओं का ये दिवास्वप्न पूर्ण हो कोयल अपनी कूक से इस धरा की पीड़ा हरे ...बहुत सुन्दर लिखा है आ० कुंती जी ,बधाई आपको. 

Comment by Meena Pathak on June 5, 2014 at 10:35am

बनी रहे आम्रतरु की जड़ें
वसंत में मंजरी खिली रहे
मिटे घर घर से मौत की पीड़ा
ईर्ष्या-द्वेष अनुराग में बदले
स्वर्ग की राह भूल परियाँ
जमीं को स्वर्ग बनाऐं
गा कोयल ......................आमीन  :-)  गा कोयल गा गीत प्रेम के 

इतनी सुन्दर प्रस्तुति हेतु सादर बधाई स्वीकारें दी 

कृपया ध्यान दे...

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