वह लड़की!
मैं उसे बदलना चाहती थी
उसे पुराने खोह से निकालकर
पहनाना चाहती थी एक नया आवरण.
उसके बाल लम्बे होते थे
अरण्डी के तेल से चुपड़ी
भारी गंध से बोझिल
वह ढीली-ढाली सलवार पहनती थी
वह उस में नाड़ा लगाती थी
उसके नाखून होते थे मेँहदी से काले
एकाध बार सफ़ेद किनारा भी दिख जाता.
वह चलती थी सर झुकाये.
वह चुप रहती
मगर....उसके मन में सागर की लहरों
का सा होता घोर गर्जन.
आँखों में हरदम एक तूफ़ान लरजता
उसकी सहेलियों की शादी हो गयी थी.
वह अपनी शादी की तैयारी में
नयी नयी चादरें काढ़ती
उसकी हस्तकला भी थी बड़ी अद्भुत.
वह गाँव के सबसे सुंदर और होनहार
लड़के को लक्ष्य साधती
उसी का सपना देखती दिन रात.
वह अपने कुर्ते की जेब में रखती
तीन मोबाइल रूमाल में लपेटे
तीन अलग अलग सिमकार्ड
मोबाइल हमेशा बंद ही रहते.
उसे डर था
कहीं कोई उसे ब्लैकमेल न कर दे.
वह अपने बलात्कार का सपना देखती
कितनी वहमी थी वह.
वह हर किसी की शादी में जाती
मन में एक आशा बनी रहती..कि-
कोई लड़का पट जाय.....लेकिन
किसीने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया.
वह तीस साल की हो गयी,
मेरे पास आयी, बड़े गुस्से में थी. बोली-
“आपने सब लड़कियों की शादी करायी
मुझे कुँवारी छोड़ दिया.......
कैसी ज्योतिषी हैं?
मेरी शादी कब होगी?.......’’
मैं मुस्कायी, नख से शिख तक देखा उसे
“मोतरमा! माना ज्योतिष में लिखा है बहुत कुछ
अच्छा वर पाने के लिये, अच्छा भी दिखना चाहिये
अपनी नहीं तो दूसरों की नज़रों में जँचना चाहिये.
मैं एक परम्परावादी पर्दानशीं लड़की हूँ
मेरा मज़हब मुझे नहीं सिखलाता खुलापन”.
“खुलापन नहीं विचारों की विशालता
देशकाल की हवा पहचानो
चंदन की महक से जुल्फ़ों को लहराने दो
एक मोबाइल ही सही मगर रखो चालू
देश-दुनिया की खबर पढ़ो
नेट के जरिये पहचान बढ़ाओ....”
“तौबा! तौबा!!.....मतिभ्रष्ट किया मेरा”.
वह चली गयी सर झुकाये...मुझे कोसती.
वर पाने की लालसा में जादू-टोना करती रही.
कुछ साल बाद मुझे पता चला
वह मर गयी.......कुँवारी.
मैंने फ़ेसबुक पर कर दी उसकी श्रद्धांजलि.
कुछ दिन बाद मेरा मन न माना
मैं गयी उसकी कब्र पर
एक फूल रखकर कहा-
“काश! तुम मेरी बात मान जाती
ज़माने के संग दो कदम मिला लेती
यूँ न अधूरी कुँवारी मर जाती
हमसफ़र होता तेरा भी कोई....”
हवा अरण्डी के तेल की गंध से बोझिल थी.
..................कुंती मुकर्जी.
(मौलिक व अप्रकाशित रचना)
Comment
जिन विद्वजनों ने मेरी इस रचना की आत्मा को पहचाना ......आप सब को मैं हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ.....हाँ इस रचना को तराशने की ज़रूरत तो है......यह रचना का एक एक शब्द सच्चाई की ईंट से गढ़ी हुई है.....प्राची जी और राजेश कुमारी जी ने बहुत करीब से इस रचना की वेदना को महसूस किया है....हमारे आस पास जाने कितनी ऐसी घटनाएँ घट जाती है हमको पता ही नहीं चलता.....जब तक हम लोगों के बीच उतरकर उनकी समस्याओं को नहीं देखेंगे....हम एसी रूम में बैठकर सिर्फ़ आलोचना ही करते रह जायेंगे.....यह रचना मेरी डायरी का एक अंश है....आप सभी को एक बार पुनः आभार प्रकट करती हूँ....सादर
एक ऐसी रचना जो पढ़ना प्रारम्भ करने के बाद जिज्ञासा बढती जाती है और पूरी पढने के मन करता है | एक लड़की के
चरित्र का सजीव वर्णन करने में सफल रचना के लिए बधाई आद कुंती मुकर्जी
आदरणीय कुंती जी , प्राचींता मे नवीनता की छौंक भी सीमित मात्रा मे ज़रूरी है , पर अधिक न हो !! सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
किसी भी चीज पर कविता लिख देना आसान नहीं होता किन्तु कुछ वाकये कुछ चरित्र जीवन में ऐसे आते हैं की खुद ब खुद कलम चल पड़ती है ये चरित्र इसी बात का उदाहरण है जिस तरीके से आपने उस लड़की के हाव भाव को दर्शाया है वो देखते ही बनता है लगता है चरित्र की आत्मा तक में डूब कर लिखी गई रचना है बहुत भाव पूर्ण है|दिल से बधाई लीजिये आ० कुंती जी |
कुंती जी , रचना का मर्म .............दिल तक गया
मनोविज्ञानी बिम्ब काव्य तत्व की सीमा में व्यक्तित्व के कई बन्द पड़े तह उघारते हैं. आपकी इस रचना को सामाजिक और व्यावहारिक रूप मिला अवश्य है आदरणीया कुन्ती जी, लेकिन इसकी तह मनोविज्ञानी सोच के इर्द-गिर्द व्यवहार पाती है. उस हिसाब से एक अच्छी रचना हुई है.
यह अवश्य है कि शिल्प के लिहाज से इस कविता को काव्य तत्त्व से तनिक और अनुप्राणित करना था.
प्रस्तुति हेतु आभार और हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीया मुखर्जी जी,
व्यावहारिक जीवन की प्रभावपूर्ण रचना, पठनीय; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आदरणीया कुंती जी
आपकी संवेदनशीलता समाज के विभिन्न वर्गों की नारियों के जीवन को बहुत करीब से प्रस्तुत करती है... यह प्रस्तुति भी इतर नहीं..इस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है.
लेकिन इस वाकिये को कविता में ढलने के लिए थोड़ा और अवश्य ही पगाना था...मुझे ऐसा महसूस हुआ.
शुभकामनाएं
आदरणीय कुंती जी
वाह भी ----- और आह भी -----
कारुणिक अंत ने हिला दिया i समय के साथ चलना भी जरूरी है i
कविता में कथा का भी आनंद i बेहतरीन i
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