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२१२२, २१२२,२१२२, २१२२  

क्या सुनाऊं दोस्त तुझको ज़िन्दगानी की कहानी,
चार सू तूफ़ान हैं और अपनी कश्ती बादबानी.
***

जब मिले पहले पहल तुम, ख्व़ाब थे रंगीन सारे,
सुर्ख आँखें हैं मेरी उस दौर की ज़िन्दा निशानी.
***

याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,   

जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी.
***

देर तक रोता रहा क़ातिल मेरा, मैंने कहा जब, 
जान तू ले ले मेरी तो होगी तेरी मेहरबानी.
***
खो गए है हर्फ़ सारे, बुझ गए जज़्बात मेरे,
क्या बने मिसरा-ए-ऊला क्या बने मिसरा-ए-सानी. 
***

“नूर” भटकेगा हमेशा टीस इक दिल में छुपाकर,
जो नज़र से कह न पाया काश कह देता ज़ुबानी. 
.
निलेश "नूर"
***************************************************
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 12:06pm

इसीलिए दूसरी पर कोशिश की है ..पहली पर नहीं :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2014 at 12:03pm

//1) कभी किसी का दिल मत दुखाओ //

यह विन्दु बड़ी विकट परिस्थितियाँ पैदा करता है आदरणीय.. .. :-))
मुझे भी ’पिता पुत्र और उनका गधा’ की कथा याद आ रही है.. !!

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 11:44am

शुक्रिया आ. वंदना जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 11:44am

शुक्रिया आ. सौरभ सर ...
बचपन में कक्षा चौथी में एक कहानी पढ़ी थी ..हरपाल सिंह नायक था उस कहानी का ..उसमे कुछ 5 सीखों का ज़िक्र है. बाक़ी तीन तो याद नहीं रहीं लेकिन दो सीखें अबतक याद हैं ..
1) कभी किसी का दिल मत दुखाओ
2) ज्ञान की बात कहीं मिले तो सीख लो ...
दूसरी सीख को अमल में लाने की कोशिश करता रहता हूँ ..
सादर

 

Comment by vandana on June 10, 2014 at 6:00am


“नूर” भटकेगा हमेशा टीस इक दिल में छुपाकर
जो नज़र से कह न पाया काश कह देता ज़ुबानी.

कमाल की ग़ज़ल है आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 11:33pm

जय हो.. . आपका सादर आभार आदरणीय. आपने मेरे कहे को इज़्ज़त दी.

वैसे मैं अपने वाले शेर की सानी पर जो कुछ सोचा है, आप भी सोचियेगा कि आखिर मैंने ऐसा क्यों सोचा.

:-)))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 9, 2014 at 11:18pm

आदरणीय सौरभ सर,
बहुत बहुत आभार .....मेरी भावनाओं को "असली" शब्द देने के लिए ...
बस यही तो मज़ा है OBO का .....मैंने ..बदलाव कर दिया है ..
सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 2:53pm

देर तक रोता रहा क़ातिल मेरा, मैंने कहा जब, 
जान तू ले ले मेरी तो होगी तेरी मेहरबानी... ...

इस शेर ने हिला के रख दिया. इस शेर के होने पर आपको दिल से बधाइयाँ, आदरणीय नीलेश नूरजी.

फिर,

“नूर” भटकेगा हमेशा बस इसी ख्वाहिश कि ख़ातिर,
जो नज़र से कह न पाया काश कह देता ज़ुबानी.
वाह-वाह-वाह !

लेकिन सादर कहूँ तो मैं कुछ यों कहता -
“नूर” भटकेगा हमेशा टीस इक दिल में छुपाये
जो नज़र से कह न पाया क्या कहेगा वो ज़ुबानी ?
आदरणीय, यह कोई सुझाव या सलाह एकदम नहीं है. बल्कि आपके कहे पर मेरा सादर अनुमोदन है. तथा, इस ज़मीन को एक पाठक के तौर पर शिद्दत से जीना है.
सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 8, 2014 at 6:09pm

शुक्रिया बृजेश जी 

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2014 at 10:05pm

बहुत शानदार ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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