For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं कभी तुझसे बिछड़ने का न मंजर देखूँ

2122   2122  2122  22

मैं कभी तुझसे बिछुड़ने का न मंजर देखूँ

मछलियों से ना कभी ख़ाली समंदर देखूँ

 

कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते

मैं ये  संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ

 

हर सितारा  तेरी किस्मत का बुलंदी पर हो

 मैं  न कोई हार से टूटा सिकंदर देखूँ

 

झेल लूँ मैं वार  खुद तेरी परेशानी के  

जीस्त में गड़ता हुआ ग़म का न खंजर देखूँ

 

जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख  बंजर देखूँ

 

इक सदाकत ,रूह की पाकीज़गी हो जिसमे

मैं तेरे दिल में वही चाहत निरंतर देखूँ 

------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 852

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2014 at 11:11am

आ० उमेश कटारा जी ,ग़ज़ल पर आपकी होंसला वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ .

Comment by umesh katara on June 8, 2014 at 8:16am

जिन्दगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख बंजर देखूँ...............वाहहहहहहहहहहहहह वाहहहहहहहहह क्या गजल कही है राजेश कुमारी जी बहुत बहुत बधायी आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2014 at 3:18pm

आ० डॉ.आशुतोष जी, ग़ज़ल पर आपकी नजरे इनायत और सराहना ने मन ऊर्जा से भर दिया मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभारी हूँ| 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 3:15pm

कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते...सिर्फ भ्रम होता है 

मैं ये  संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ....लाजबाब 

जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख  बंजर देखूँ....सुंदर पंक्तियाँ ...

आदरणीया राज जी ..आपकी उम्दा ग़ज़लों की श्रेणी में शामिल इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2014 at 3:14pm

प्रिय प्राची जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपका  दिल की गहराइयों से हार्दिक आभार. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 7, 2014 at 2:56pm

मन में प्यार संजोए बहुत कोमल भावनाओं को शब्द देते सभी अशआर बहुत सुन्दर बने हैं 

जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख  बंजर देखूँ....बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई आदरणीया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2014 at 10:11am

आ० नीलेश जी, ग़ज़ल की सराहना हेतु तहे दिल से आभारी हूँ. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2014 at 10:10am

प्रिय जितेन्द्र गीत भैय्या इस होंस्लाफ्जाई के लिए बहुत- बहुत शुक्रिया,ग़ज़ल सार्थक हुई.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2014 at 10:08am

आ० सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई दिल से आभार आपका. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 6, 2014 at 9:02am

बहुत खूब ..वाह वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service