2122 2122 2122 22
मैं कभी तुझसे बिछुड़ने का न मंजर देखूँ
मछलियों से ना कभी ख़ाली समंदर देखूँ
कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते
मैं ये संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ
हर सितारा तेरी किस्मत का बुलंदी पर हो
मैं न कोई हार से टूटा सिकंदर देखूँ
झेल लूँ मैं वार खुद तेरी परेशानी के
जीस्त में गड़ता हुआ ग़म का न खंजर देखूँ
जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा
मैं मुहब्बत की जमीं की कोख बंजर देखूँ
इक सदाकत ,रूह की पाकीज़गी हो जिसमे
मैं तेरे दिल में वही चाहत निरंतर देखूँ
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा
मैं मुहब्बत की जमीं की कोख बंजर देखूँ............बहुत सुंदर .दिल को छु गया
बहुत खुबसूरत गजल आदरणीया राजेश दीदी, हर एक शेर बहुत खूब. तहे दिल से बधाई आपको
कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते
मैं ये संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ
बहुत सुन्दर गजल। सुन्दर भाव
भमर ५
आ० कुंती जी, आपको ग़ज़ल के अशआर प्रभावित कर सके मेरा लिखना सफल हुआ आपकी जर्रानवाजी का तहे दिल से शुक्रिया.
पूरी गज़ल प्यार केएक एक शब्द में पगी हुई....
जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा
मैं मुहब्बत की जमीं की कोख बंजर देखूँ......कितनी सुंदर ख्यालात है.राजेश कुमारी जी, मुहब्बत से भरे दिल ही में ऐसी मधुर स्रोत फूटती है......सादर
नरेन्द्र सिंह चौहान जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत- बहुत शुक्रिया .
आ० मीना पाठक जी इस होंसलाफ्जाई के लिए दिल की गहराई से शुक्रिया.
आ० डॉ गोपाल नारायण जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ|तहे दिल से आभार आपका.सादर .
क्या बात है ... बेहतरीन गज़ल .. बधाई आप को आदरणीया राजेश कुमारी जी | सादर
आदरणीया
बहुत अच्छी गजल कही आपने i मक्ता तो लाजवाब है ही i शुभकामना सहित i
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