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न जाने कब चाँद निकलेगा

जब सूरज चला जाता है
अस्ताचल की ओट में
और चाँद नहीं निकलता है.
दिखती है उफक पर
पश्चिम दिशा की ओर
लाल लकीरें.
पूरब में काली आँखों वाला राक्षस
खोलता है मुंह
लेता है जोर की साँसे
चलती है तेज हवाएं.
लाल लकीरें डूब जाती हैं,
फिर सब हो जाता है प्रशांत.
मैं पाता हूँ स्वयं को
एक अंध विवर में
हो जाता हूँ विलीन
तम से एकाकार .
खो जाता है मेरा वजूद.
न जाने कब चाँद निकलेगा.

..नीरज कुमार नीर .

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on June 21, 2014 at 4:43pm

आदरणीय विजय निकोरे जी आपका हार्दिक आभार ,

Comment by Neeraj Neer on June 21, 2014 at 4:43pm

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी 

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 7:46am

मनोस्थिति की सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीय नीरज जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 11:31pm

वाह ! .. बहुत सुन्दर !

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:56pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी आपके इस खूबसूरत टिप्पणी के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ. 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:54pm

आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी कविता पर आकर प्रोत्साहित करने के लिए सादर आभार.. 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:54pm

शुक्रिया आ. मीना पाठक जी 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:53pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपका आभार. 

Comment by Neeraj Neer on June 19, 2014 at 7:53pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 19, 2014 at 11:52am

प्रकृति का बहुत खूबसूरत चित्रण होना

सूर्य का अस्त हो जाना और चाँद का न आना...अंध तमस में उजास की किरण को प्रतीक्षारत मन की स्थिति का सुन्दर वर्णन 

हार्दिक बधाई आ० नीरज जी 

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