एक पुरुष करता है
अपनी स्त्री से बहुत प्यार.
उसने डाल दी है
उसके पांवों में बेड़ियाँ.
वह उसे खोना नहीं चाहता.
स्त्री भी करती है
उससे बेपनाह मुहब्बत.
वह भी उसे खोना नहीं चाहती.
पर वह नहीं डाल पाती है
उसके पैरों में बेड़ियाँ.
बेड़ियाँ मिलती हैं बाजार में
खरीदी जाती हैं पैसों के बल पर.
नीरज कुमार नीर ..
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
थोड़ी और कसावट के लिए समय मांगती हुई सभावनाओं भरी इस कविता के लिए हार्दिक बधाई, भाई नीरज नीर जी.
शुभेच्छाएँ
आपका धन्यवाद आदरणीय भाई जीतेन्द्र गीत जी ..
आपका हार्दिक धन्यवाद .. आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी ..
आदरणीय नीरज जी,
आपने मेरे कहे को संज्ञान में लिया...आपका धन्यवाद
मुझे भी लगता है कि प्रेमिका के स्थान पर स्त्री ही कर देना ज्यादा उचित होगा...
अंतिम पंक्ति में आपने लिखा है पैसों के बल पर खरीदी जाती हैं बेड़िया.. उन्ही बेड़ियों के सापेक्ष देखने पर स्त्री ही यथोचित प्रतीत होता है.
सादर.
ऐसे प्रेम अक्सर सुनने में आते है इसे शायद अपने अंदर बहुत सारी असुरक्षित भावनाओं की एक मानसिक बिमारी भी कह सकते हैं.
प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी
आदरणीया अन्नपूर्णा जी मनोबल बढाने हेतू आपका सादर धन्यवाद ..
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी आपका इस प्रोत्साहन हेतू अनेक धन्यवाद ..
आदरणीया मीना पाठक जी सादर धन्यवाद ..
आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा "प्रेमिका " की जगह अगर स्त्री कर दूँ तो शायद यह अधिक उपयुक्त होगा .. अगर आप की सहमति हो तो मैं इसे एडिट कर दूंगा .. आभार.
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