For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कायर हैं वे लोग यहाँ , नारी को आँख दिखाते हैं

कायर हैं वे लोग यहाँ

नारी को आँख दिखाते हैं

कमतर कमजोर हैं वे नर भी

नारी को ढाल बनाते हैं

------------------------

कौरव रावण इतिहास बहुत से

अधम नीच नर बदला लेते

अपनी मूंछे ऊंची रखने को

नारी का बलि चढ़ा दिए

अंजाम सदा वे  धूल फांक

मुंह छिपा नरक में वास किये

मानव -दानव का फर्क मिटा

मानवता को बदनाम किये

नाली के कीड़े तुच्छ सदा

खुद को भी फांसी टांग लिए

नारी रोती है विलख आज

क्या पल थे ऐसे पूत जने

कायर हैं वे लोग यहाँ

नारी को आँख दिखाते हैं

कमतर कमजोर हैं वे नर भी

नारी को ढाल बनाते हैं

=====================

इन अधम नीच नर से अच्छे

चौपाये जंगल राज भला

हैं वीर बहुत खुद लड़ लेते

मादा को रखें सुरक्षित  सा

उनके नैनों में झाँक-झाँक

वे क्रीड़ा-प्रेम बहुत करते

शावक-शिशु मादा सभी निशा

हरियाली-खुश विचरा करते

दिन में असुरक्षित माँ -बहनें -

अपनी- कहते रोना आता

कायर हैं वे लोग यहाँ

नारी को आँख दिखाते हैं

कमतर कमजोर हैं वे नर भी

नारी को ढाल बनाते हैं

=========================

नारी -देवी-लक्ष्मी अपनी

संकोच शील की छवि न्यारी

बिन नारी भवन खंडहर हैं

मंदिर सूना -ना-प्रेम -पुजारी

तितली -बदली-चन्दा -गुलाब

हैं जेठ दुपहरी शीतल छाया

चन्दन-खुशबू-कुंकुम -पराग

मधु-मधुर  बहुत अनुपम-माया

है यही मोहिनी सृष्टि यही

जन पूत उसी से मिटती भी 

शीतल गंगा जग सींच रही

ना हो ऐसा वो उबल पड़े

पालन पोषण दुग्धामृत सब

जीवन अपना सब हाथ लिए

इस सृष्टि का मत कर विनाश

देखो कल हों कंकाल पड़े

नारी दुर्गा -काली -चण्डी

है रौद्र रूप बच के रहना

दया स्नेह संस्कार मूर्ति

हिय भरे नेह गर बच रहना

कायर हैं वे लोग यहाँ

नारी को आँख दिखाते हैं

कमतर कमजोर हैं वे नर भी

नारी को ढाल बनाते हैं

====================

"मौलिक व अप्रकाशित" 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '

कुल्लू हिमाचल

भारत

7.30 A.M. -8.15 P.M.

13.06.2014

Views: 817

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 15, 2014 at 6:14pm

बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश दे रही है आपकी ये प्रस्तुति ,भ्रमर जी बहुत- बहुत बधाई इस शानदार अभिव्यक्ति पर 

Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:27pm

बढ़िया है आदरणीय भ्रमर सर आपको बहुत -२ बधाई प्रेषित है सादर

Comment by savitamishra on June 15, 2014 at 9:21am

बहुत खुबसूरत लिखा आपने नमन .........

ऐसे ही पढ़ मन में अ गया ....
नारी क्यों ढाल बनी
उसे तो भाल बनाना चाहिए
पुरुषो की अहमी सोच को
हमेशा किनारे रखना चाहिए
नर दिखाए तेवर तो
नहीं निराश होना चाहिए
दुर्गा चंडी नारी का ही रूप है
उसे यह अहसास होना चाहिए
कदम से कदम मिला चल रही
दंभ नहीं स्वयं पर गर्व होना चाहिए
दरिंदो के मन में खौफ पैदा हो
ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिए| सविता

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 14, 2014 at 2:29pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी बहुत सुन्दर कहा आप ने नारी का ढाल बनना चाहिए न की बनाना चाहिए कायरता अब तो चरम पर है आभार आप से समर्थन मिला
भ्रमर ५

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2014 at 1:35pm

त्रुटि होगई है - अपितु नारी का ढाल बनना चाहिये i अस्तु i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2014 at 1:33pm

भ्रमर जी

सरासर सहमत हूँ कि नारी को ढाल  नहीं बनाना चाहिए अपितु नारी का ढाल बनाना चाहिए i  दिनकर जी नेकहा है -

              राधेय  जरा हंसकर बोला रे कुटिल बात क्या कहता है  ?

              नर की जय का समस्त साधन उसकी बाँहों में रहता है i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service