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पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.. .
सादर
बहुत ही सार्थक लेख आपने यहाँ साझा किया है, बहुत बुद्धिजीवी तो नही हूँ किन्तु यह कह सकता हूँ की जैसे हमें विदेशों में कुछ अच्छा लगता है तो शायद उन्हें भी हमारे देश में कुछ न कुछ भाता ही होगा. हालाँकि हमारा देश जनसँख्या व् अलग अलग धर्मों के हिसाब से बहुत बड़ा है यहाँ की संस्कृतियाँ तो शायद सभी देशो को भाती है हमारे देश में मनाये जाने वाले त्यौहार, जो हर रिश्ते-नातों को एक मजबूती प्रदान करते है. रही बात स्वतंत्रता की तो उसके भी अनुशाशन नामक डोर से हाथ-पांव बंधे रहना चाहिए, ताकि कुछ अनुशाशनहीन कार्य न हो सकें. स्वतंत्रताओं को हर व्यक्ति अपने हिसाब से चला ले जाता है जहाँ तक उसे फायदा दिखे जब उसी स्वतंत्रता में जाकर फस जाए तब उसे अनुशाशन की याद आ ही जाती है. भावनाओं के बारे में अगर बात करें तो दुनिया में हर इंसान की हर प्राणी की भावनाए होती है जो इंसान या प्राणियों को ही समझना पड़ता है. नही तो एक कहावत है जैसे को तैसा.
बधाई प्रेषित इस प्रस्तुति पर आदरणीय डा.विजय जी
सादर!
इस बेहतरीन पोस्ट को मैं साझा कर रहा हूँ फेसबुक पर ..देखते हैं वहां क्या प्रतिक्रिया आती है ...यहाँ मैं पढ़ रहा हूँ सबके विचार ...आपका हार्दिक आभार!
आदरनीय विजय भाई , व्यवहारिक अच्चाइयाँ जहाँ कही भी हो न केवल सराहना के योग्य होती हैं अपितु अनुकरणीय भी होती हैं । और अपनी सभ्यता और संस्कृति की सीमाओं मे रहते हुये इनका अनुकरण किया भी जाना चाहिये ॥
प्रेरक लघुवार्ता प्रस्तुति है| लघुलेख अपना प्रभाव छोडने मे पर्याप्त सक्षम हुआ है|
यहाँ बात भारत देश और दूसरे देश के मध्य तुलना नही की गयी है, बल्कि तुलना है अमेरिकी नागरिकों की भावना अमेरिका के प्रति उस वातावरण के प्रति उस समाज के प्रति और उनके उस योगदान के प्रति जो वे अपनी जन्मभूमि को समर्पित करते है| किसी भी दर्शन की अच्छी बातें अच्छा दृष्टिकोण अपनाने मे क्या बुराई है| ये आप पर निर्भर करता है कि आप उनका पिज्जा बर्गर अपनाते है या उनका अपने जॉब के प्रति समर्पित होकर कर्मठता और ईमानदारी से डेडलाइन के पहले ही टास्क कंप्लीट करते है| खैर ......... बहुत से उदाहरण दिये जा सकते है इस तरह के| एक छोटा उदाहरण देना चाहूंगी "जब भी कोई भारतीय कहीं देर से पहुंचता है, तो शर्मिंदा होने के बजाय उसे भारतीय घड़ी कि संज्ञा दे कर हवा मे उड़ा दिया जाता है|
मै बहुत आभारी हूँ आपके इस लेख की जिसने मुझे इतनी अच्छी बाते बतायीं जिसमे करन्सी की समानता होना, और हॉर्न संस्कृति का प्रयोग| विदित हो कि भारत मे प्रेशर हॉर्न प्रतिबंधित है काफी समय से, क्यूकी इनसे शॉक लगने का खतरा, हृदयघात, अकस्मात दुर्घटना, और गर्भपात का चांस रहता है| फिर भी देखिये हर टेक्सी मे आप प्रेशर हॉर्न का बड़े स्तर पर प्रयोग पाएंगे आप|
और स्वयं स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा है कि जियो अपने धर्म मे लेकिन किसी भी धर्म, दर्शन, और संस्कृति कि अच्छाइयाँ ग्रहण करना चाहिए|
लेख का दृष्टिकोण अपने विषय से न्याय कर रहा है| बधाई आपको!!
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