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आ जिंदगी तुझको
थोड़ा देंखें करीब से |
इक हम हैं जो जीते हैं
सिर्फ तेरे ही दम से
इक तू है की मिलती है
सिर्फ और सिर्फ नसीब से ||................अक्सर सिर्फ एक कदम के फासले से सताती है ज़िंदगी और हम उसके पीछे भागते ही रह जाते हैं...उम्र निकल जाती है. क्यों न ऐसा हो कि ज़िंदगी ही राह तके..... क्या मुमकिन है?
ऐसे ही ख़याल उठे आपकी अभिव्यक्ति पढ़ कर..समझ कर.
इस प्रस्तुति पर दिली बधाई स्वीकारिये आ० डॉ० विजय शंकर जी
जिंदगी अपनी होते हुये भी
क्यों अंजानी सी लगती है
दूसरे की जिंदगी क्यों अच्छी ,
जानी पहचानी सी लगती है
सच! शायद दुसरे हमें अपने जीवन में आये उतार-चढाव का परिणाम व् उनमे अपने निर्णय बता देते है, और हम अपनी समस्यायों में ही उलझे पड़े रहते है. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.विजय जी
जिंदगी अपनी होते हुये भी
क्यों अंजानी सी लगती है
दूसरे की जिंदगी क्यों अच्छी ,
जानी पहचानी सी लगती है ||
वही तो…
साथ बैठें तेरे कभी आ
कुछ बात करें, तुझी से
आ जिंदगी तुझको
थोड़ा देंखें करीब से |
इक हम हैं जो जीते हैं
सिर्फ तेरे ही दम से
इक तू है की मिलती है
सिर्फ और सिर्फ नसीब से ||----वाह्ह्ह बहुत सुन्दर विचार ,बढ़िया अभिव्यक्ति ,बधाई आपको |
विजय जी
जिन्दगी के अबूझ फलसफे को आपने निज के अनुभव से एक नयी तासीर दी i इसकेलिए आपको धन्यवाद i
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