“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में है टीम...”
“अरे हाँ यार! तेरे घर तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”
“ आने दे यार! वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख मैच”
जितेन्द्र ’गीत’
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
बहुत सजीव शब्द चित्र उकेरा है
शिल्प पर कसी, सुगठित, संवेदनाओं को झकझोरती इस सार्थक लघुकथा पर हार्दिक बधाई आ० जितेन्द्र जी
प्रिय मित्र,
लघुकथा उस क्षण का कलात्मक चित्रण है जिसमें जीवन के गहन अर्थ छिपे हों। साधारण में से असाधारण ढूंढना और उसका चित्रण करना ही लघुकथा की विशेषता है। लघुकथा में अस्पष्टता, धुन्दलेपन, विस्तार और विशलेषण का कोई स्थान नहीं होता। वह लघुकथा ही सफल मानी जाती है जिसमें शब्दों को बढ़ाना या घटाना संभव न हो। आपकी प्रस्तुत लघुकथा की विशेषता इसका कसा हुआ शिल्प, एक ही क्षण की प्रस्तुति व अनावश्यक विवरण ना होना है। बहुत दिनों बाद ऐसी लघुकथा पढ़ कर आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई। बेशक इस विषय पर मेरा ज्ञान बहुत ही अल्प है इसलिए मैं किसी की रचना पर टिप्पणी करने का दुस्साहस नहीं करता। कुछ ज्यादा कह दिया हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ। भविष्य में आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी।
आदरणीया कल्पना रमानी जी, जब संतान ही ऐसा बर्ताब करे या अपने पालकों के प्रति असंवेदनशील हो तो दुसरे रिश्तों के प्रति क्या विश्वाश किया जाएगा..? आपकी उपस्थिति हमेशा रचना के लिए आशीर्वाद स्वरूप होती है जिसे कम न होने दीजियेगा
सादर!
आदरणीया महिमा जी, आपकी उपस्थिति से लेखन को मनोबल मिला व् मन को ख़ुशी मिली . आज के सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में संवेदनाओं को केवल स्वार्थ देखकर ही उपयोग में लाया जाता है, सच में यह एक कटु सत्य ही है जब तक किसी से सुख मिले तब तक ठीक वरना कौन किस पर अपनी स्वतंत्रता या सुखों को न्यौछावर करता है. रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ
सादर!
आदरणीय विजय मिश्र जी, आप बिलकुल सही कह रहे है जिन्दगी जुआ ही तो है . जीते तो और जीत का लालच, हार जाय तो जीत के लिए सब दाव पर लगा देना. आपके स्नेह हेतु आपका हार्दिक आभार
सादर!
आपका कहना सही है आदरणीय विजय निकोर जी, किन्तु ऐसी असंवेदनशीलता मैंने अधिकतर स्वार्थ के रूप में ज्यादा देखी है. रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार
सादर!
आपकी सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय शुभ्रांशु जी, आपके स्नेहिल मार्गदर्शन का हमेशा इन्तजार रहता है. यूहीं स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
संतान की संवेदन हीनता का मार्मिक चित्रण किया है, आदरणीय जितेंद्र जी, बधाई आपको
बहुत ही मार्मिक .. कटु सत्य ... आज के सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में फैले संवेदनहीनता को बहुत ही करीने से प्रस्तुती हुयी है .. हार्दिक बधाई आपको
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