अपनी हर सांस में …
अपनी हर सांस में...तुझे करीब पाता हूँ
तुझे हर ख्याल में अपना हबीब पाता हूँ
बिन तेरे ज़िंदगी की हर मसर्रत है झूठी
राहे वफ़ा में तुझे अपना नसीब पाता हूँ
तुम्हारे वाद-ए-फ़र्दा पर ..यकीं करूँ कैसे
हर दीद में इक तिश्नगी ..अजीब पाता हूँ
कूए कातिल से गुजरना ..आदत है मेरी
अपने ज़ख्मों में .अपना अज़ीज़ पाता हूँ
रूए-ज़ेबा को भला ज़हन से भुलाऊँ कैसे
बिन तुम्हारे तो मैं खुद को गरीब पाता हूँ
(मसर्रत = खुशी ,वाद-ऐ-फ़र्दा = कल आने का वादा ,
कूए कातिल = कातिल की गली ,रूए ज़ेबा =सुंदर चेहरा )
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत खूब .. ढेरों बधाई | सादर
तुम्हारे वाद-ए-फ़र्दा पर ..यकीं करूँ कैसे
हर दीद में इक तिश्नगी ..अजीब पाता हूँ
कूए कातिल से गुजरना ..आदत है मेरी
अपने ज़ख्मों में .अपना अज़ीज़ पाता हूँ.............दिल को छू जाते भाव, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय शुशील जी
आदरणीया गीतिका 'वेदिका' जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा और अमूल्य सुझाव का हार्दिक आभार। कोशिश करूंगा आपके सुझाव को कार्यरूप में परिणित कर सकूँ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
परम आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी नज़रे इनायत ने एक ऊंचाई प्रदान की है … आपके इस स्नेह का हार्दिक आभार
एक खूबसूरत गज़लनुमा ख्याल आ० सुशील जी!
समय देके इसे बहर के अनुशासन पर एक खूबसूरत गज़ल का रूप भी दिया जा सकता है
बहरहाल बधाई स्वीकारें आदरणीय सुशील जी!
सुन्दर अभिव्यक्ति .....बधाई आपको आ० सुशील सरना जी |
सरना जी
बड़ी ही नायाब गजल है i हर शेर हमला करता है i हम घायल होते जाते है i आपको बधाई i
आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया
बहुत खूब सर अच्छी कविता है
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