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कोई खामोश, मेरा हम ज़बाँ है
बड़ी चुप सी ,मेरी हर दास्ताँ है
कोई अब साथ आये या न आये
अकेलेपन से मेरा कारवाँ है
कहीं है आदमी में उस्तवारी
कहीं हर शख़्स लगता नातवाँ है
ये मीठी झिड़कियाँ ज़ारी हैं जब तक
तभी तक कोई रिश्ता दरमियाँ है
यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती
यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है
दिया बाती कहीं से खोज लाओ
उजाला चंद पल का मेहमाँ है
ज़मी से दूब सा रिश्ता हमारा
हुआ क्या? अब ज़मीं से आसमाँ है
तेरी यादों की ठंडक से लगा यूँ
कोई कश्ती नदी में ज्यूँ रवाँ है
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उस्तवारी = मज़बूती , नातवाँ = कमज़ोर , जाविदाँ = अमर
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती
यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है
दिया बाती कहीं से खोज लाओ
उजाला चंद पल का मेहमाँ है
दोनों अशआर दिल छू गए ,हमेशा की तरह बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है ,काफ़िया क्या खूब है ...दिली दाद कबूलें आ० गिरिराज जी .
कोई खामोश, मेरा हम ज़बाँ है
बड़ी चुप सी ,मेरी हर दास्ताँ है... बहुत उम्दा
यहाँ कब ज़िन्दगी हरदम है जीती
यहाँ तो मौत ही बस जाविदाँ है....कटु सत्य
तेरी यादों की ठंडक से लगा यूँ
कोई कश्ती नदी में ज्यूँ रवाँ है... क्या कशिश है
आ० गिरिराज भाई इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई .
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