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कहीं अब झाँकती है रोशनी भी
कहीं बदली लगी थोड़ी हटी भी
शजर अब छाँव देने लग गये हैं
फ़िज़ा में गूंजती है अब हँसी भी
निशाँ पत्थर में पड़ते लग रहे हैं
अभी है रस्सियों में जाँ बची भी
जहाँ चाहत मरी घुट घुट, वहीं पर
नई चाहत कोई दिल में पली भी
मिलेंगी शाह राहों से ये गलियाँ
गली से रिस रही है ये खुशी भी
मरे से ख़्वाब करवट ले रहे हैं
नज़र आने लगी है ज़िन्दगी भी
ये कैसा वक़्त है, क्या नाम दूँ मै
ख़ुदी भी है सलामत , बेख़ुदी भी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्राची जी , आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका हृदर से आभारी हूँ ॥
बहुत खूबसूरत अश'आर हुए हैं आ० गिरिराज भंडारी जी
इन दो अशआर ननें अपनी मुलायमियत और निहित भावों से बहुत प्रभावित किया
जहाँ चाहत मरी घुट घुट, वहीं पर
नई चाहत कोई दिल में पली भी
मरे से ख़्वाब करवट ले रहे हैं
नज़र आने लगी है ज़िन्दगी भी
हार्दिक बधाई
आदरनीय सौरभ भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
बहुत खूब आदरणीय !
निशाँ पत्थर में पड़ते लग रहे हैं
अभी है रस्सियों में जाँ बची भी.. . . ग़ज़ब !
आदरणीया राजेश जी , ग़ज़ल पर आपकी विस्तृत गम्भीर चर्चा देख कर मन खुश हो गया । आपकी सलाह भी उचित है , तकाबुले रदीफ दोष दिख रहा है , अभी सुधार कर लेता हूँ ॥ सराहना और सलाह के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
कहीं अब झाँकती है रोशनी भी
कहीं बदली लगी थोड़ी हटी भी-----वाह खूबसूरत द्रश्य उकेरा है
शजर अब छाँव देने लग गये हैं
फ़िज़ा में गूंजती है अब हँसी भी----बहुत सुन्दर
निशाँ पत्थर में पड़ते लग रहे हैं
अभी है रस्सियों में जाँ बची भी ----जबरदस्त शेर .....किन्तु एक संशय है अभी है के साथ बची भी ठीक नहीं लग रहा या तो बची हुई होना था जो यहाँ रदीफ़ के अनुसार नहीं हो सकता
तो इसका निवारण -----दिखी है /रही है --रस्सियों में जाँ बची भी -----हो सकता है (ये मेरी निजी सोच है कृपया अन्यथा न लें ,शेर बहुत ही खूबसूरत है इसमें दो राय नहीं है )
जहाँ चाहत मरी घुट घुट, वहीं पर
नई चाहत कोई दिल में पली भी------कमाल- कमाल
ये गलियाँ शाह राहों से मिलेंगी------मिलेंगी शाह राहों से ये गलियाँ,---उसी से /तभी तो ----रिस रही है ये ख़ुशी भी ---करें तो ?
गली से रिस रही है ये खुशी भी----- तकाबुले रदीफ़ ???
मरे से ख़्वाब करवट ले रहे हैं
नज़र आने लगी है ज़िन्दगी भी---सुभानल्लाह क्या कहने
ये कैसा वक़्त है, क्या नाम दूँ मै
ख़ुदी भी है सलामत , बेख़ुदी भी-----शानदार
बहुत बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज जी ढेरों दाद कबूलें
आदरणीय राम अवध भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय नरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
उम्दा गजल के लिये एवं अन्त तक रदीफ को शलीके से निर्वहन के लिये हार्दिक बधाई
आदरनीय जितेन्द्र भाई , आपकी सराहना हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करते आई है , आपके स्नेह के लिये आपका आभारी हूँ ॥
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