For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं बहुत जीता हूँ, …….

मैं बहुत जीता हूँ, …….

जीता हूँ ….
और बहुत जीता हूँ …..
ज़िन्दगी के हर मुखौटे को जीता हूँ //

हर पल …..
इक आसमाँ को जीता हूँ ……
हर पल …….
इक जमीं को जीता हूँ //

मैं ज़मीन -आसमाँ ही नहीं …..
अपने क्षण भंगुर …..
वजूद को भी जीता हूँ //

कभी हंसी को जीता हूँ ….
तो कभी ग़मों के जीता हूँ …..
जिंदा हूँ जब तक …..
मैं हर शै को जीता हूँ //

मगर घृणा होती है इस जीने से …..
जब कहीं कोई नारी …..
वासना भरी दरिंदगी की शिकार होती है //

जब कहीं कोई नारी भ्रूण ….
ममत्व से तिरिस्कृत हो …..
किसी कचरे के ढेर ……
मंदिर की सीढ़ी,……
या बाल आश्रम में …..
नियति के भरोसे छोड़ दिया जाता है //

जब कहीं कोई वृद्ध …..
अपनों की उपेक्षा का ……
शिकार होता है //

जब सड़क पर आहत ……
कोई रक्त रंजित व्यक्ति …..
किसी सहारे के लिए …..
तड़पते तडपते शांत हो जाता है //

हाँ तब भी मैं जीता हूँ ….
मगर एक घृणा के साथ //

घृणा ,इंसान में मरती इंसानियत को देखकर …..
जीवन मूल्यों का क्षरण होते देख कर …
संस्कारों अवमूल्यन देखकर ….
संवेदनाओं का मरण देखकर //

हाँ सच कहता हूँ …..
इतना सब होने के बावजूद भी …..
मैं जीता हूँ //

मैं अपने असहाय वजूद की मौत को ….
हर पल जीता हूँ ….
हाँ !मैं बहुत जीता हूँ //

हंसी के खोल में …..
ज़िन्दगी के दर्द को जीता हूँ //


सच !
मैं बहुत जीता हूँ //


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 7, 2014 at 12:11pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 2:20am

वाह !

ज़िन्दग़ी के कश्मकश साथ चलते हैं. एक अच्छी कविताऔर उसकी भावदशा के लिए बधाई.

Comment by Sushil Sarna on July 4, 2014 at 1:55pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी रचना के भावों को आपकी स्वीकृति ने रचना को जो मान दिया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 30, 2014 at 8:29pm

अपने असहाय वजूद की मौत को ….
हर पल जीता हूँ ….

हंसी के खोल में …..
ज़िन्दगी के दर्द को जीता हूँ 

................सामाजिक विषमताएं देख अंतर्मन में झाँकती आत्माभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई आ० सुशील सरना जी 

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2014 at 7:08pm

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपई  जी रचना के भावों को आपके समर्थन का हार्दिक आभार 

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 6:36pm

सार्थक और सटीक रचना बधाई । 

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2014 at 2:58pm

आदरणीय विजय मिश्र जी रचना पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने रचना का जो मान बढ़ाया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2014 at 2:56pm

आदरणीय विजय मिश्र जी रचना पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने रचना का जो मान बढ़ाया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 25, 2014 at 11:56am

जीने में खुशी है, गम है, पीड़ा है, प्रेम है, घृणा है   

समाज में रहनेवाले हम सभी कितने जिम्मेदार है ..इन सबके लिए ..प्रश्न यह भी होना चाहिए ..समाधान तलाशने की दिशा में भी प्रयत्न होने चाहिए ...सादर मैंने अपने विचार रक्खे हैं ..अन्यथा न लें!

Comment by विजय मिश्र on June 24, 2014 at 5:47pm
सरना भाई ,इतने अंगारों पर एक बारगी ऊँगली रख दियी ,और लपटों से तो पूरा दिल ही जला लिया |जीना दुश्वार हो जाए तो ताज्जुब क्या है! बहुत ज्वलंत और जीवन्त रचना |बारम्बार आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service