याद की छाई घटाये चाँद उनमे खो गया I
रोते-रोते थक गया तो नील नभ पर सो गया I
ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार का छाया नशा
स्वप्न के टूटे किनारे चांदनी में धो गया I
पर्वतो के श्रृंग पर है शाश्वत हिम का मुकुट
मौन के सम्राट का भी ह्रदय प्रस्तर हो गया I
देखकर इस देह के पावन मरुस्थल का धुआं
एक सहृदय रेत में कुछ आंसुओ को बो गया I
कल्पना के कलश में करुणा अभी 'गोपाल' की
ढल न पाई कवि ह्रदय में दर्द आकर रो गया I
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आपके मुख से यह नाम सुनकर बहुत अपनापन सा लगा आदरणीय डा.गोपाल जी :)
सादर!
प्रिय धामी जी
आप इतनी सुन्दर गजले कहते है i आपका अनुमोदन मेरे लिए अति महत्वपूर्ण है i
प्रिय जीतू जी
आपका शत-शत आभार i
महनीया कुंती जी
आपका स्नेह पाकर मन प्रफुल्लित हो गया i ऐसा ही नेह बनाये रखें i सादर i
आदरणीय भाई गोपाल नारायण जी आपकी इस हिंदी गजल ने मन मोह लिया । प्रफुल्लित मन को उद्गार व्यक्त करने के लिए उचित शब्द नही मिल रहे । कोटि-कोटि बधाई स्वीकारें ।
देखकर इस देह के पावन मरुस्थल का धुआं
एक सहृदय रेत में कुछ आंसुओ को बो गया......अतिसुन्दर भावपूर्ण, बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.गोपाल जी
बहुत सुंदर दोहे.....
ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार का छाया नशा
स्वप्न के टूटे किनारे चांदनी में धो गया I....आपको हार्दिक बधाई.
महनीया
आपके प्रोत्साहन से अभिभूत हुआ i
मित्र / अनुज
यह आपका ही प्रभाव है की मैने हिन्दी में गजल लिखने की शुरुआत की i आपका बहुत आभार i
आदरणीय भ्रमर जी
आपका बहुत बहुत आभार I
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