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याद  की   छाई  घटाये  चाँद  उनमे  खो  गया  I

रोते-रोते थक गया  तो नील  नभ पर सो गया  I

 

ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार  का छाया नशा

स्वप्न  के  टूटे   किनारे  चांदनी   में धो  गया  I

 

पर्वतो के श्रृंग पर  है  शाश्वत  हिम  का  मुकुट

मौन  के  सम्राट का  भी  ह्रदय  प्रस्तर हो गया  I

 

देखकर  इस  देह के  पावन मरुस्थल का धुआं

एक  सहृदय रेत  में  कुछ आंसुओ को बो गया  I

 

कल्पना के कलश में करुणा  अभी 'गोपाल' की

ढल न पाई  कवि  ह्रदय में दर्द  आकर रो गया  I

 

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:39am

आपके मुख से यह नाम सुनकर बहुत अपनापन सा लगा आदरणीय डा.गोपाल जी   :)

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 27, 2014 at 11:49am

प्रिय धामी जी

आप इतनी सुन्दर गजले कहते है i आपका अनुमोदन मेरे लिए अति महत्वपूर्ण है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 27, 2014 at 11:47am

प्रिय जीतू  जी

आपका शत-शत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 27, 2014 at 11:46am

महनीया कुंती जी

आपका स्नेह पाकर मन प्रफुल्लित हो गया  i  ऐसा ही नेह बनाये रखें i सादर i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 27, 2014 at 10:26am

आदरणीय भाई गोपाल नारायण जी आपकी इस हिंदी गजल ने मन मोह लिया । प्रफुल्लित मन को उद्गार व्यक्त करने के लिए उचित शब्द नही मिल रहे । कोटि-कोटि बधाई स्वीकारें ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2014 at 11:49pm

देखकर  इस  देह के  पावन मरुस्थल का धुआं

एक  सहृदय रेत  में  कुछ आंसुओ को बो गया......अतिसुन्दर भावपूर्ण, बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.गोपाल जी

 

Comment by coontee mukerji on June 26, 2014 at 10:00pm

बहुत सुंदर दोहे.....

ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार  का छाया नशा

स्वप्न  के  टूटे   किनारे  चांदनी   में धो  गया  I....आपको हार्दिक बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 26, 2014 at 8:56pm

महनीया

आपके प्रोत्साहन से अभिभूत हुआ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 26, 2014 at 8:55pm

मित्र / अनुज

यह आपका ही प्रभाव है की मैने हिन्दी में गजल लिखने की शुरुआत की i आपका बहुत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 26, 2014 at 8:53pm

आदरणीय भ्रमर जी

आपका बहुत बहुत आभार I

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