प्रोषितपतिका मंदिर में स्थित देवता पर फूल चढाने वाली ही थी कि उसका आठ वर्षीय बेटा दौड़ा हुआ आया और हांफते हुए बोला -'मम्मी , पूरे दस महीने बाद आज डैडी घर आये है i' इतना कह्कर लड़का वापस चला गया i माँ ने झटपट पूजा संपन्न की और घर की ओर भागी i उसके पहुचते ही बेटे ने टिप्पड़ी की माँ आपके दोनों पैरो में अलग - अलग किस्म की चप्पले है i माँ ने झेप कर पैरो की ओर देखा फिर लाज की एक रेखा सी उसके चेहरेपर दौड़ गयी i पतिदेव शरारत से मुस्कराये i
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नर्म ,मुलायम-सी लघुकथा है ये , बेहद खुबसूरत ! बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी .
अरसे बाद प्रिय मिलन की खुशी में सुधबुध खोती प्रिया की दशा को बारीकी से शब्दबद्ध किया है
हार्दिक बधाई आ० डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
आदरणीय सौरभ जी
आपके दो शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखते है क्योंकि आपसे हमेशा कुछ सीखने को मिलता है i सादर i
आदरणीय गीतिका वेदिका जी
आपका हार्दिक आभार i
सविता मिश्रा जी
आपकी सराहना का आभार i
महनीया
आपका प्रोत्साहन पाकर मन प्रसन्न हुआ i सादर i
आत्मीयता और उतावलेपन को स्वर देने का प्रयास हुआ है. प्रोषितपतिका संज्ञा हालाँकि इस कथा में सहज मेल नहीं है. यदि यह लघुकथा किसी सत्य घटना पर आधारित है, तो भी.
बाकी विद्वद्जनों ने अधिक सार्थक कहा है.
सादर
पुनर्मिलन की भावुकता में होश खोना ...बहुत प्यारी अतिलघु कहानी ..दो शब्दों हजार बात
प्रिय से मिलने की उतावली में और बातों का होश ही कहाँ रहता है, अच्छी लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई
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