आपगा सरस्वती
मंत्र है प्रमाण इस भारत मही में कभी
वाणी की प्रतीक देवि आपगा यशस्विनी I
बहती थी मंद -मंद सींचती थी छंद -छंद
बोलती थी कल , कल -कंठ से मनस्विनी I
स्नान करते थे आर्य, पान करते थे वारि
ध्यान धरती थी यह धारिणी तपस्विनी I
आज यदि होती वह , मेरे पाप धोती वह
ज्ञान बीज बोती, मेरी मातः पयस्विनी I
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
विजय मिश्रा जी
आपका शत -शत आभार i
आदरणीय विजय शंकर जी
आपसे ऐसा ही स्नेह अपेक्षित है i सादर i
आदरणीया विन्दु बाबु
आपके प्रति शत -शत आभार i
प्रिय जवाहरलाल जी
शारदा माँ पर आपका अनुराग अक्षुण्ण बना रहे i सादर i
आदरणीय मित्र भंडारी जी
आपके प्यार का आभार i
महोदय,
इस सुंदर वन्दना के लिए हार्दिक बधाई आपको।
माँ सरस्वती की कृपा आप पर सदैव बनी रहे...मेरी शुभकामनायें।
सादर
जय माँ वीणापाणी! जय माँ शारदे!
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , माँ सरस्वती की सुन्दर वंदना की रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । माँ सरस्वती की कृपा ऐसे ही आप पर बनी रहे !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online