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भला हो या बुरा हो बस, शिकायत  फितरतों में है
वो ऐसा शक्स है  जिसकी बगावत  फितरतों में है
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रहेगा साथ  जब तक वो  चलेगा  चाल उलटी ही
भले  ही  दोस्तों  में  वो, अदावत  फितरतों में है
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उसे लेना  नहीं  कुछ  भी  बड़े   छोटे  के होने से
खड़ा हो  सामने जो भी, नसीहत  फितरतों में है
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हुनर  सबको  नहीं  आता  हमेशा  याद  रखने का
भुलाए वो किसी को  क्या, मुहब्बत फितरतों में है
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कड़ा रूख हुश्न अपनाए बताओ किस तरह बोलो
सुना  है  हमने  तो यारो नजाकत फितरतों में है
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शरारत गर न करते  तो  कहाँ  वो बच्चे कहलाते  
बुढ़ापा  ये  नहीं   अच्छा  शरारत  फितरतों में है
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चुभे जो सच वो कहने से जुबा चुप हो यही अच्छा
भले  अच्छा  तुम्हारी भी  सदाकत फितरतों में है     = सत्यता
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कभी  वो  बाढ़  देता   है  कभी  देता  अकालें  वो
न जाने क्यों खुदा के  भी कयामत फितरतों में है
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हरारत  वक्त  पर  आये  जरूरी  है, कहावत सच     =  क्रोध
‘मुसाफिर’ पर नहीं  अच्छा हरारत फितरतों में है
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( रचना - 12 जनवरी 2014 )

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रचना मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर ’

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2014 at 12:45pm

आदरणीय भाई गोपाल नारायण जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवार । आ0 यदि लेखनी निरंतर बेहतर लिख पा रही है तो यह ओबीओ परिवार की बदौलत ही है । परिवार से जो स्नेह और मार्गदर्शन निरंतर मिल रहा है वही मेरे आगे बढ़ते चरणों का पेरणास्रोत है ।

Comment by shalini rastogi on June 27, 2014 at 9:45am

रहेगा साथ  जब तक वो  चलेगा  चाल उलटी ही
भले  ही  दोस्तों  में  वो, अदावत  फितरतों में है ... वाह, क्या बात कही है , उम्दा ग़ज़ल !

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 26, 2014 at 7:11pm
बहुत सुन्दर आ o लक्ष्मण धामी जी बधाई .
Comment by Abhinav Arun on June 26, 2014 at 4:52pm
क्या कहने धामी जी खूबसूरत शेरो से सजी सुन्दर ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद !!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 26, 2014 at 1:02pm

मुसाफिर जी

इस रदीफ़ को इतने शेरो में सफलतापूर्वक निभाना आपकी कलम की ताकत का सबूत है i  पूरी गजल निहायत उम्दा है i  i

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