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बेईमान सारे एक हैं- डा० विजय शंकर

बेईमानी की इतनी विधाएँ हैं
झूठ के रूप अनेक हैं
फिर भी बेईमान सारे एक हैं |
ऐसा भाई-चारा , ऐसा प्रेम ,
शायद ही कहीं किसी कर्म-क्षेत्र
के रखवालों में मिले , दुर्लभ है ।
दूसरी और सच एक है ,
ईमानदारी एक है ,
न सच के दो रूप हो सकते हैं ,
न ईमानदारी के |
फिर भी दो सच्चे ईमानदार
कभी एक नहीं हो सकते हैं
उनका एक होना दुर्लभ है ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 3, 2016 at 6:05am
वाह! आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , जब कोई किसी पुरानी रचना पर पहुँच कर याद कर लेता है तो खुशी कई गुना अधिक होती है , वैसे भी हम लोग जो भी लिखते हैं वह साधारण होते हुए भी सदैव सामयिक और प्रासंगिक ही लगता है क्योंकि यहां बदलता तो सिर्फ आदमी है , बाकी तो सब कुछ वैसा ही रहता है।
रचना पर आपकी उपस्थित एवं उसे मान देने के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 11:03pm

बेईमानी की इतनी विधाएँ हैं
झूठ के रूप अनेक हैं
फिर भी बेईमान सारे एक हैं |
ऐसा भाई-चारा , ऐसा प्रेम ,
शायद ही कहीं किसी कर्म-क्षेत्र
के रखवालों में मिले , दुर्लभ है ।-----सौ टका  सच्ची  बात  कही  है  आपने  ,बढ़िया है ! 

दूसरी और सच एक है ,
ईमानदारी एक है ,
न सच के दो रूप हो सकते हैं ,
न ईमानदारी के |
फिर भी दो सच्चे ईमानदार
कभी एक नहीं हो सकते हैं
उनका एक होना दुर्लभ है---कटु  सत्य है  ये  भी ....शानदार  रचना  है  ये  आपकी  आदरणीय  डॉ विजय शंकर  जी .बधाई  आपको 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 13, 2014 at 9:39pm
धन्यवाद आदरणीय डॉ o प्राची सिंह जी .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2014 at 2:09pm

बेईमानों की अनेकता में एकत्व का होना ... सही है

इस प्रस्तुति के लिए बधाई आ० विजय शंकर जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 4, 2014 at 7:20pm
आदरणीय डॉ ० आशुतोष मिश्रा जी ,
सम्मानित बधाई के लिए धन्यवाद एवं आभार .
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 4, 2014 at 7:18pm
आदरणीय जीतेन्द्र जी ,
बधाई के लिए धन्यवाद .आपने गहराई को देखा , आभार .
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 4, 2014 at 7:15pm
आदरणीय बृजेश नीरज जी ,
हार्दिक बधाई के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2014 at 3:10pm
आदरणीय विजय जी ..आपके चिंतन में अनोखी ताजगी देखी ..इस चिंतन को सलाम सादर
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 10:00am

यही बिडम्बना है सारे इमानदार या  सच एक नहीं हो सकते क्युकी शायद उनके भी अपने अलग-अलग पैमाने होते है.  इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई आदरणीय डा.विजय जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2014 at 9:52am

आ० विजय भाई भाव अच्छे है , शिल्प में और कसावट की आवश्यकता है , हार्दिक बधाई कबूलें l

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