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लघुकथा : खोटा सिक्का (गणेश जी बागी)

                       "अजी सुनती हो! देख लो तुम्हारे लाड़ले की करतूत, सेकंड इयर का रिज़ल्ट आया है, खीँच खांच के पास हुए हैं जनाब,  दिनभर दोस्तो के साथ मटरगश्ती और मारपीट करते रहते हैं, अब तो बर्दाश्त से बाहर हो गया है |"

                        "अब जाने भी दीजिए जी, बच्चा है, थोड़ी-बहुत ग़लतियाँ तो हो ही जाती हैं, आपको पता है,  बिटिया बता रही थी कि भाई के कारण ही कॉलेज मे कोई उसकी तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं करता।"


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Ravi Prabhakar on July 7, 2014 at 7:05pm

आदरणीय गणेश भाई,
बहुत दिनों बाद आपकी कोई लघुकथा पढ़ने को मिली। तृप्त हो गया। बहुत ही उम्दा लघुकथा कही आपने।
लघुकथा की शिल्पकारी पर आप जैसी पकड़ बहुत कम देखने को मिलती है। हमारे प्रतिदिन के जीवन
में कुछ बातें, घटनाएं और व्यवहार ऐसे हो जाते है जो हमें कुछ सोचने/करने के लिए मजबूर कर जाते है।
यह घटना, बात या व्यवहार ऐसे अल्प समय में और कई बार तो पलक झपकते ही हो जाते हैं कि साधारण
व्यक्ति इसे समझ नहीं पाता परन्तु संवेदनशील और सूक्षम भावों से युक्त व्यक्ति पर इनका प्रभाव चिरस्थाई होता है।
इन कुछ क्षणों की कलात्मक पेशकश ही सही मायने में लघुकथा है। आपकी लघुकथाओं की विशेषता यह होती है
कि आप इनमें घटना, बात या व्यवहार का वर्णन नहीं अपितु विशलेषण पेश करते हैं और यही आपकी लघुकथाओं
को सफल व विलक्षण बनाते है। प्रस्तुत लघुकथा के लिए हृदय तल से शुभकामनाएं। लिखते रहा करें.... आपकी
लघुकथाओं का इन्जार रहता है। धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 6:36pm

एक ऐसी पारिवारिक बातचीत जो अक्सर घरों में इसी ढंग से होती है. और पारिवारिक सदस्यों का सामाजिक व्यवहार चलता है. यह कथा ऐसी तिक्त गोली को साझा कर रही है जिसे चाहे-अनचाहे कस्बाई ही नहीं बड़े शहरों में भी परिवार के बड़ों द्वारा निगला जाना एक विवशता हो गयी है.

गणेश भाई, इसे लघुकथा का विन्यास देने के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.

Comment by विनय कुमार on July 7, 2014 at 12:32pm

बहुत उम्दा लघुकथा , बधाई..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2014 at 2:07pm

आदरणीया सविता मिश्रा जी, सराहना हेतु कॉटिश: आभार .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2014 at 2:04pm

आदरणीया प्रियंका जी, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु आभार व्यक्त करता हूँ .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2014 at 2:03pm

आदरणीया गितिका जी, आपकी पाठक धार्मिता को नमन, आपकी टिप्पणी लघुकथा को सार्थक करती है, बहुत बहुत आभार .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2014 at 2:01pm

सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय विजय निकोर जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2014 at 2:01pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी टिप्पणी पुरस्कार सदृश है, आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है और लेखन के प्रायोजन को सार्थक करती है, बहुत बहुत आभार .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2014 at 2:00pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सराहना हेतु कोटि कोटि आभार, स्नेह बनाए रखें .

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 9:08pm
आदरणीय बागी जी यथार्थवादी लघुकथा प्रायः ऐसा देखने को मिलता है। बहुत बहुत बधाई

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