1.
खर्चा-आमद एक सा, क्या नफरत क्या प्यार
छाना-फूँका पी लिया, फिर चिंता क्या यार
फिर चिंता क्या यार, गजब हूँ धुन का पक्का
रह-रह चढ़े तरंग, जगत भी हक्का-बक्का
रहता मस्त-मलंग, फाड़ता रह-रह पर्चा
और खुले ये हाथ, यहीं हर आमद-खर्चा
2.
जग तो बड़ा सुजान है, लेकिन हम हतभाग्य
फिर भी मन संयत रहा, यही तनिक सौभाग्य
यही तनिक सौभाग्य, बीतता देखा हर पल
मिलजुल पल दें सीख, वही फिर मन के संबल
नहीं किसी से बैर, नहीं मन भारी, डगमग
किससे करें सवाल, पता जब है कैसा जग !
3.
कैसी जग की रीति अब, कैसा जग-व्यवहार
लोंदे के आदेश पर चढ़ता चाक कुम्हार
चढ़ता चाक कुम्हार, उलट क्या बहती गंगा
जिसके ईश कुबेर, उसे ही देखा नंगा
चूहा करता ऐंठ, सिंह की ऐसी-तैसी
तप का फल दुत्कार, ज़िन्दग़ी पायी कैसी !!
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-सौरभ
*************
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया पारुल जी. आपका स्वागत है.
आपको रचनाएँ रुचिकर लगीं, मेरा भी प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय गोपाल नारायनजी.
आदरणीय नरेन्द्रसिंहजी, प्रोत्साहन के लिए सादर धन्यवाद
सादर धन्यवाद आदरणीय सुशीलभाईजी.
आपको प्रयास रुचिकर लगा, प्रयास सार्थक हुआ, हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामीजी.
आपकी पारखी दृष्टि के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय प्रकाशजी. मैं कभी-कभार अपने सुर और स्वर यों ही बदलता रहता हूँ.
सादर
आदरणीय सौरभ सर तीनो कुण्डलिया छंद बहुत ही शानदार बने पड़े हैं हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरनीय सौरभ भाई , तीनो कुंडलिया लाजवाब रची है आपने , इनमे से निम्न मुझे मेरे दिल से बहुत क़रीब लगी ॥
जग तो बड़ा सुजान है, लेकिन हम हतभाग्य
फिर भी मन संयत रहा, यही तनिक सौभाग्य
यही तनिक सौभाग्य, बीतता देखा हर पल
मिलजुल पल दें सीख, वही फिर मन के संबल
नहीं किसी से बैर, नहीं मन भारी, डगमग
किससे करें सवाल, पता जब है कैसा जग ! ---- अनेकानेक बधाइयाँ ॥
बहुत ही सुन्दर सार्थक कुंडलियाँ ,तीनो ही बेहतरीन हैं |बहुत- बहुत बधाई आपको आ० सौरभ जी |
अत्यंत सुन्दर !
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