"तड़ाक !"
थप्पड़ बड़े जोर का था और साहब की उतनी ही तीखी आवाज़
"खाने में फिर बाल , दिखाई नहीं देता तुमको "|
बाई भी सहम गयी और सोचने लगी कि कल तो मेमसाब कह रहीं थीं कि कैसा मर्द है तुम्हारा, तुमको पी कर पीटता है , और साहब ने तो आज पी भी नहीं है |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय विनय भाई,
नमस्कार । आपने अपनी लघुकथा के माध्यम से बड़ा ही जोरदार और झन्नाटेदार थप्पड़ मारा पुरूष प्रधान समाजिक व्यवस्था पर । एक शानदार कृति के लिए आपको हृदय से बधाई संप्रेषित करता हूं, स्वीकार करें।
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