इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे ……
वक्त तेरे दामन . को मोतियों से भरूँ
इक बार बीते लम्हों से मिला दे मुझे
थक गया हूँ बहुत ..बिछुड़ के जिससे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
पंथ के शूलों से हैं रक्त रंजित ये पाँव
नहीं दूर तलक कोई ममता का गाँव
अश्रु अपनी हथेली पे ले लेती थी जो
उस आँचल की छाँव में छुपा दे मुझे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
मेरी अकथ व्यथा को पढ़ लेती थी जो
मेरी साँसों में तृप्ति सी भर देती थी जो
मेरे पाषाण पलों को मोम करती थी जो
हिम गंगा सी वो मूरत दिखा दे मुझे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
सुशील सरना/
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
बहुत सुंदर आदरणीय सुशील सर बधाई स्वीकार करें
आदरणीय अरुन कुमार निगम जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी रचना के मर्म पर आपकी मार्मिक प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी रचना के भावों पर आपके आशीर्वचनों का हार्दिक आभार
आदरणीय केवल प्रसाद जी रचना के भावों ने आपको प्रभावित किया मेरा लेखन सफल हुआ । आपकी इन आशीर्वचनों का हार्दिक आभार
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना आपके हृदय को छू सकी इससे मेरा लेखन सफल हुआ। आपकी इन आशीर्वचनों का हार्दिक आभार
आदरणीय अरुन शर्मा जी रचना के मर्म ने आपको प्रभावित किया मेरा लेखन सफल हुआ , आपका हार्दिक आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना में निहित भावों को आपकी स्वीकृति ने जो मान दिया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील जी, अत्यंत ही मार्मिक गीत.............
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