For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत - शशि पुरवार

हस्ताक्षर की कही कहानी
चुपके से गलियारों ने
मिर्च मसाला , बनती ख़बरें
छपी सुबह अखबारों में.

राजमहल में बसी रौशनी
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है
रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में.

अपनेपन की नदियाँ सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में.

किस पतंग की डोर कटी है
किसने पेंच लडाये है
दांव पेंच के बनते जाले
सभ्यता पर घिर आये है

आँखे गड़ी हुई खिड़की पर
होठ नये आकारों में.

मौलिक और अप्रकाशित

--शशि पुरवार

Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashi purwar on August 13, 2014 at 1:23pm

आदरणीय कल्पना जी बहुत बहुत धन्यवाद ,

आदरणीय सौरभ जी  नवगीत पर आपकी समीक्षा से ही यूँ लगा लिखना  सार्थक हो  गया ,  देर से रिप्लाई के लिए माफ़ी चाहूंगी , समय ने अस्पताल पंहुचा दिया   था , उर्ज्वासित करती हुई प्रतिक्रिया हेतु आभार

आप सभी आदरणीय सुधिजनो की तहे दिल से आभारी  हूँ

Comment by कल्पना रामानी on July 22, 2014 at 8:54pm

बहुत सुंदर नवगीत रचा है शशि जी, आप यूँ ही तरक्की करती रहें। हार्दिक बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 2:54am

नवगीत के बिम्बात्मक प्रतिमानों के सापेक्ष एक निहायत पठनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया शशिजी.

यह अवश्य है कि १६-१४ पर मात्राओं का निर्वहन इन दो आधार पंक्तियों में नहीं हो पाया है -

रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में.

बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में.

किन्तु, आपकी प्रस्तुति के इंगित अभिनव हैं, इसमें कोई संदेह नहीं. और, यही किसी नवगीत के लिए प्रमुख मानकों में से एक है.
प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on July 20, 2014 at 1:04pm

अच्छी रचना है। एक सुझाव है दूसरे बंद की अंतिम पंक्ति में लय कुछ बाधित लग रही है। 'उदासीनता' की जगह यदि 'उदासीन'ही रखा जाय तो शायद ठीक रहेगा। अच्छे नवगीत के लिए शशि पुरवार को बधाई । 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 14, 2014 at 8:18pm

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ रची है आपने आदरणीया शशि जी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 13, 2014 at 9:47am

अपनेपन की नदियाँ सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में................अति सुंदर भाव उभर कर आयें है, आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीया शशि जी

Comment by Santlal Karun on July 12, 2014 at 8:23pm

आदरणीया शशि पुरवार जी,

वर्तमान जन-जीवन की हताशा पर व्यंग्य करता यह नवगीत आम आदमी के दुखते मर्म को स्पर्श करता है---

"राजमहल में बसी रौशनी 
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी 
झोपड़ियों की चर्चा है 
रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में."

... हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by shashi purwar on July 11, 2014 at 1:42pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी  प्रोत्साहित करती हुई टिप्णी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by shashi purwar on July 11, 2014 at 1:41pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी उर्ज्वासित करती हुई प्रतिक्रिया हतु तहे दिल  आभार .

Comment by shashi purwar on July 11, 2014 at 1:40pm

आदरणीय डा. गोपाल नायारण जी , प्रोत्साहित करती हुई टिप्णी हेतु तहे दिल से आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service