हस्ताक्षर की कही कहानी
चुपके से गलियारों ने
मिर्च मसाला , बनती ख़बरें
छपी सुबह अखबारों में.
राजमहल में बसी रौशनी
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है
रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में.
अपनेपन की नदियाँ सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में.
किस पतंग की डोर कटी है
किसने पेंच लडाये है
दांव पेंच के बनते जाले
सभ्यता पर घिर आये है
आँखे गड़ी हुई खिड़की पर
होठ नये आकारों में.
मौलिक और अप्रकाशित
--शशि पुरवार
Comment
आदरणीय कल्पना जी बहुत बहुत धन्यवाद ,
आदरणीय सौरभ जी नवगीत पर आपकी समीक्षा से ही यूँ लगा लिखना सार्थक हो गया , देर से रिप्लाई के लिए माफ़ी चाहूंगी , समय ने अस्पताल पंहुचा दिया था , उर्ज्वासित करती हुई प्रतिक्रिया हेतु आभार
आप सभी आदरणीय सुधिजनो की तहे दिल से आभारी हूँ
बहुत सुंदर नवगीत रचा है शशि जी, आप यूँ ही तरक्की करती रहें। हार्दिक बधाई आपको
नवगीत के बिम्बात्मक प्रतिमानों के सापेक्ष एक निहायत पठनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया शशिजी.
यह अवश्य है कि १६-१४ पर मात्राओं का निर्वहन इन दो आधार पंक्तियों में नहीं हो पाया है -
रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में.
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में.
किन्तु, आपकी प्रस्तुति के इंगित अभिनव हैं, इसमें कोई संदेह नहीं. और, यही किसी नवगीत के लिए प्रमुख मानकों में से एक है.
प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
अच्छी रचना है। एक सुझाव है दूसरे बंद की अंतिम पंक्ति में लय कुछ बाधित लग रही है। 'उदासीनता' की जगह यदि 'उदासीन'ही रखा जाय तो शायद ठीक रहेगा। अच्छे नवगीत के लिए शशि पुरवार को बधाई ।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ रची है आपने आदरणीया शशि जी
अपनेपन की नदियाँ सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में................अति सुंदर भाव उभर कर आयें है, आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीया शशि जी
आदरणीया शशि पुरवार जी,
वर्तमान जन-जीवन की हताशा पर व्यंग्य करता यह नवगीत आम आदमी के दुखते मर्म को स्पर्श करता है---
"राजमहल में बसी रौशनी
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है
रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में."
... हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आदरणीय शिज्जू शकूर जी प्रोत्साहित करती हुई टिप्णी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय राजेश कुमारी जी उर्ज्वासित करती हुई प्रतिक्रिया हतु तहे दिल आभार .
आदरणीय डा. गोपाल नायारण जी , प्रोत्साहित करती हुई टिप्णी हेतु तहे दिल से आभार
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