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Shashi purwar's Blog (20)

गजल - शशि पुरवार

२१२२ २१२२ २१२

जंग दौलत की छिड़ी है रार क्या

आदमी की आज है दरकार क्या १

जालसाजी के घनेरे मेघ है

हो गया जीवन सभी बेकार क्या२



लुट रही है राह में हर नार क्यों

झुक रहा है शर्म से संसार क्या ३

छल रहे है दोस्ती की आड़ में

अब भरोसे का नहीं किरदार क्या ४

गुम हुआ साया भी अपना छोड़कर

हो रहा जीना भी अब दुश्वार क्या ५



धुंध आँखों से छटी जब प्रेम की

घात अपनों का दिखा गद्दार क्या६

इन…

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Added by shashi purwar on August 18, 2014 at 9:30pm — 8 Comments

नवगीत - शशि पुरवार

हस्ताक्षर की कही कहानी

चुपके से गलियारों ने

मिर्च मसाला , बनती ख़बरें

छपी सुबह अखबारों में.

राजमहल में बसी रौशनी

भारी भरकम खर्चा है

महँगाई ने बाँह मरोड़ी

झोपड़ियों की चर्चा है

रक्षक ही भक्षक बन बैठे है

खुले आम दरबारों में.

अपनेपन की नदियाँ सूखी,

सूखा खून शिराओं में

रूखे रूखे आखर झरते

कंकर फँसा निगाहों में

बनावटी है मीठी वाणी

उदासीनता व्यवहारों में.

किस पतंग…

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Added by shashi purwar on July 10, 2014 at 7:30pm — 13 Comments

गजल - शशि पुरवार

जिंदगी जब से सधी होने लगी
जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी

डूब कर हमने जिया है काम को
काम से ही अब ख़ुशी होने लगी

हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी

नेक दिल की बात करते है चतुर
हर कहे अक से बदी होने लगी

चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा
यादें दिल की फिर कली होने लगी


------- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shashi purwar on March 22, 2014 at 9:30pm — 11 Comments

सार ललित छंद -- शशि पुरवार

छन्न पकैया छन्न पकैया ,छंदो का क्या कहना

एक है हीरा दूजा मोती, बने कलम का गहना

छन्न पकैया छन्न पकैया ,राग हुआ है कैसा

प्रेम रंग की होली खेलो ,दोन टके का पैसा



छन्न पकैया छन्न पकैया ,रंग भरी पिचकारी

बुरा न मानो होली है ,कह ,खेले दुनिया सारी

छन्न पकैया छन्न पकैया , होली खूब मनाये

बीती बाते बिसरा दे ,तो , प्रेम नीति अपनाये



छन्न पकैया छन्न पकैया ,दुनिया है सतरंगी

क्या झूठा है क्या…

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Added by shashi purwar on March 16, 2014 at 10:30pm — 3 Comments

कह मुकरियाँ -- शशि पुरवार

इस विधा में प्रथम प्रयास है -- ( १- ४ )

सुबह सवेरे रोज जगाये

नयी ताजगी लेकर आये

दिन ढलते, ढलता रंग रूप

क्या सखि साजन ?

नहीं सखि धूप

साथ तुम्हारा सबसे प्यारा

दिल चाहे फिर मिलू दुबारा

हर पल बूझू , यही पहेली

क्या सखि साजन ?

नहीं सहेली

रोज ,रात -दिन चलती जाती

रुक गयी तो मुझे डराती

झटपट चलती है ,खड़ी - खड़ी

क्या सखि साजन ?

ना काल घडी

धन की गागर छलकी…

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Added by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:00am — 15 Comments

क्षणिकाएं -- शशि पुरवार

क्षणिकाएं --



प्रतिभा --

नहीं रोक सके,

काले बादल

उगते सूरज की किरणें।



सपने --

तपते हुए रेगिस्तान

की बालू में चमकता हुआ

पानी का स्त्रोत, औ

जीने की प्यास.



आशा -

पतझड़ के मौसम में

बसंत के आगमन का

सन्देश देती है,

कोमल प्रस्फुटित पत्तियां।



संस्कार -

रोपे हुए वृक्ष में

मिलायी गयी खाद,

औ खिले हुए पुष्प।



पीढ़ी -

बीत गयी सदियाँ

नही मिट सकी…

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Added by shashi purwar on January 31, 2014 at 10:00pm — 11 Comments

नवगीत - नव वर्ष से है हम सबको। -- शशि पुरवार

नये वर्ष से है ,हम सबको

उम्मीदें कुछ खास

आँगन के बूढ़े बरगद की

झुकी हरिक डाली

मौसम घर का बदल गया ,

फिर

विवश हुआ माली

ठिठुर रहे है सर्द हवा में

भीगे से अहसास

दरक गये दरवाजे घर के

आंधी थी आयी

तिनका तिनका भी उजड़ गया

बेसुध है माई

जतन कर रही बूढी साँसे

आये कोई पास

चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया

नयी जगह घबराय

दुनियाँ उसकी बदल गयी है

कौन उसे समझाय

ऊँची ऊँची अटारियों पे…

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Added by shashi purwar on January 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments

नवगीत -- सियासती दावत

नूतन वर्ष में
नये -पुराने ,सपने
सियासती दावत में
फिर परसे जायेंगे  .
 
वह मन को भरमायेंगे
अतीत भुलायेंगे

नये कपडे ,पुराने
तन को पहनाएंगे
 
शक्कर में पगे हुये
शब्द शब्द बनावटी
ललना से फिसलकर 

प्रजा लुभायेंगे 
 
विजय कुरसी मिलेगी
अधर ,मुस्कान खिलेगी 
सिर पर नेताओं के 
श्वेत कलगी…
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Added by shashi purwar on December 21, 2013 at 2:00pm — 15 Comments

रावण मरता नहीं। …… नवगीत

प्रतिवर्ष
पुतले  जल जाते  है

पर ,

रावण मरता नहीं





पाप- पुण्य की गठरी खोले
तोते है कितने वाचाल
अंधी श्रद्धा का यहाँ ,पर
फैल रहा है मकडजाल

नोट , करारे चढाने से
राहु
चाल बदलता नहीं .





सूट - बूट पहन कर रावण
गली गली मंडराते है
गर मिल जाये तितली ,कोई
पंख भी कतरे जाते है

भयग्रस्त हो गयी…
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Added by shashi purwar on October 15, 2013 at 3:30pm — 14 Comments

क्षणिकाएं


माँ तुम हो
शक्तिस्वरूपा
मेरी भक्ति का संसार
माँ से ही प्रारंभ
यह जीवन
माँ ही उर्जा का संचार
नीड बनाने में कितनी
खो  गयी थी  माँ
उड़ गए
पंछी घोसलों से
फिर तन्हा हो गयी है माँ
-- शशि पुरवार

-----------------------
१६ / ९ /१३

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 12 Comments

फूल बागो में खिले --- गजल

फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है

मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .



फूल माला में गुथे या केश की शोभा बने

टूट कर फिर डाल से ये फूल तो मुरझाते है



फूल का हर रंग रूप तो सुरभि भी पहचान है

फूल डाली पर खिले तो भौरों को ललचाते है



फूल चंपा के खिले या फिर चमेली के खिले

फूल सारे बाग़ के मधुबन को ही महकाते है



भोर उपवन की देखो तितली से ही गुलजार हुई

फूलों का मकरंद पीने भौरे भी  मंडराते है



पेड़ पौधो से सदा…

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Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 13 Comments

गीत -- कण कण में बसी है माँ।

गीत --
कण कण में बसी है माँ।
.
उडती खुशबु रसोई की
नासिका में समाये
भोजन बना स्नेह भाव से
क्षुधा शांत कर जाय
प्रातः हो या साँझ की बेला
तुमसे ही सजी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
.
संतान के ,सुख की खातिर
अपने स्वप्न मिटाये
पीर अपने मन की ,तुमने
घाव भी नहीं दिखाए
खुशियाँ ,घर के सभी कोने में
तुमने ही भरी है…
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Added by shashi purwar on October 1, 2013 at 3:01pm — 18 Comments

फासलों का यह किनारा और है। ……… गजल

आज से रस्ता हमारा और है
साथ चलने का इशारा और है
.
चल रही ऐसी यहाँ पर आंधियाँ
घर का बिखरा ये नजारा और है
.
या खुदा रहमत नहीं अब चाहिए
फासलों का ये किनारा और है
.
ख्वाहिशों को तोडा था तुमने कभी
फिर भी दिल ने हाँ पुकारा और है
.
हर ख़ुशी मिलती नहीं टकराव से
हार जाने का इजारा और है

.

भूल जायेंगे चलो दुख की निशा

प्यार के सुख…
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Added by shashi purwar on September 23, 2013 at 3:30pm — 20 Comments

मन चंचल --

मन के उपजे कुछ हाइकू  आपके समक्ष --

मन के भाव

शांत उपवन में 

पाखी से उड़े .

उड़े है  पंछी

नया जहाँ बसाने

नीड है खाली ।

मन की पीर

शब्दों की अंगीठी से

जन्मे है गीत।

सुख औ दुःख

नदी के दो किनारे

खुली किताब।

मै का से कहूँ

सुलगते है भाव

सूखती जड़े।

मोहे न जाने

मन का सांवरिया

खुली…

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Added by shashi purwar on September 10, 2013 at 1:30pm — 16 Comments

क्यूँ तुम खामोश रहे .. माहिया

1

क्यूँ तुम खामोश रहे
पहले कौन कहे
दोनों ही तड़प सहे .


आसान नहीं राहे
पग पग में धोखा
थामी तेरी बाहें .


यह जीवन सतरंगी
राही चलता जा
है मन तो मनरंगी .


साचे ही करम करो
छल तो काला है
जीवन में रंग भरो .


- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shashi purwar on July 22, 2013 at 1:00pm — 9 Comments

कहाँ उड़ गयी नींदे .... माहिया

रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण, लेखिका से वार्ता के पश्चात हटा दी गई है । 

एडमिन

Added by shashi purwar on July 14, 2013 at 5:30pm — 14 Comments

प्रकृति ने दिया अपना जबाब ......

प्रकृति की

नैसर्गिक चित्रकारी पर

मानव ने खींच दी है

विनाशकारी लकीरे

सूखने लगे है

जलप्रताप, नदियाँ

फिर

एक सा जलजला आया 

समुद्र  की गहराईयों में

और  प्रलय का नाग

निगलने लगा

मानवनिर्मित कृतियों को,

धीरे  धीरे

चित्त्कार उठी धरती

फटने  लगे बादल

बदल गए मौसम

बिगड़ गया  संतुलन

हम

किसे दोष दे ?

प्रकृति  को ?

या मानव को ?

जिसने अपनी

महत्वकांशाओ…

Continue

Added by shashi purwar on July 12, 2013 at 12:30am — 18 Comments

सूखे गुल की दास्ताँ.!

अश्क आँखों में औ

तबस्सुम होठो पे है



सूखे गुल  की दास्ताँ

अब बंद किताबो में है



बीते वक़्त का वो लम्हा

कैद मन की यादों में है



दिल  में दबी है चिंगारी

जलती शमा रातो में है



चुभन है यह विरह की  

दर्द कहाँ अल्फाजों में है



नश्वर होती  है  रूह

प्रेम समर्पण भाव में है



अविरल चलती ये साँसे

रहती जिन्दा तन में है



खेल है यह तकदीर का

डोर…

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Added by shashi purwar on July 3, 2013 at 10:30pm — 8 Comments

गजल -- कुछ और करिश्मे गजल के देखते है

मित्रो इस बार नेट व्यवधान के कारन यह मुशायरा अंक में प्रस्तुत नहीं कर सकी थी , एक छोटा सा प्रयास किया था ...आपके समक्ष -- समीक्षा की   अपेक्षा है;



चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है

लोग कितने अजब है चल के देखते है



गली गली में यहाँ आज पाप कितना फैला

खुदा के नाम पे ईमान छल के देखते है



ये लोग कितने गिरे है जो आबरू से खेले

झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है



ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे  

बनावटी ये जहाँ से निकल के…

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Added by shashi purwar on July 1, 2013 at 3:00pm — 14 Comments

dohe

गंगा जमुना  भारती ,सर्व  गुणों की खान
मैला करते नीर को  ,यह पापी इंसान .

सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल
कूड़े करकट से हुआ ,जल जीवन बेहाल .

गंगा को पावन करे  , प्रथम यही अभियान
जीवन जल निर्मल बहे ,सदा करे  सम्मान .
--- शशि पुरवार

Added by shashi purwar on March 20, 2013 at 4:08pm — 12 Comments

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