२१२२ २१२२ २१२
जंग दौलत की छिड़ी है रार क्या
आदमी की आज है दरकार क्या १
जालसाजी के घनेरे मेघ है
हो गया जीवन सभी बेकार क्या२
लुट रही है राह में हर नार क्यों
झुक रहा है शर्म से संसार क्या ३
छल रहे है दोस्ती की आड़ में
अब भरोसे का नहीं किरदार क्या ४
गुम हुआ साया भी अपना छोड़कर
हो रहा जीना भी अब दुश्वार क्या ५
धुंध आँखों से छटी जब प्रेम की
घात अपनों का दिखा गद्दार क्या६
इन…
ContinueAdded by shashi purwar on August 18, 2014 at 9:30pm — 8 Comments
हस्ताक्षर की कही कहानी
चुपके से गलियारों ने
मिर्च मसाला , बनती ख़बरें
छपी सुबह अखबारों में.
राजमहल में बसी रौशनी
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है
रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में.
अपनेपन की नदियाँ सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में.
किस पतंग…
ContinueAdded by shashi purwar on July 10, 2014 at 7:30pm — 13 Comments
जिंदगी जब से सधी होने लगी
जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी
डूब कर हमने जिया है काम को
काम से ही अब ख़ुशी होने लगी
हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी
नेक दिल की बात करते है चतुर
हर कहे अक से बदी होने लगी
चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा
यादें दिल की फिर कली होने लगी
------- शशि पुरवार
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shashi purwar on March 22, 2014 at 9:30pm — 11 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया ,छंदो का क्या कहना
एक है हीरा दूजा मोती, बने कलम का गहना
छन्न पकैया छन्न पकैया ,राग हुआ है कैसा
प्रेम रंग की होली खेलो ,दोन टके का पैसा
छन्न पकैया छन्न पकैया ,रंग भरी पिचकारी
बुरा न मानो होली है ,कह ,खेले दुनिया सारी
छन्न पकैया छन्न पकैया , होली खूब मनाये
बीती बाते बिसरा दे ,तो , प्रेम नीति अपनाये
छन्न पकैया छन्न पकैया ,दुनिया है सतरंगी
क्या झूठा है क्या…
Added by shashi purwar on March 16, 2014 at 10:30pm — 3 Comments
इस विधा में प्रथम प्रयास है -- ( १- ४ )
सुबह सवेरे रोज जगाये
नयी ताजगी लेकर आये
दिन ढलते, ढलता रंग रूप
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि धूप
साथ तुम्हारा सबसे प्यारा
दिल चाहे फिर मिलू दुबारा
हर पल बूझू , यही पहेली
क्या सखि साजन ?
नहीं सहेली
रोज ,रात -दिन चलती जाती
रुक गयी तो मुझे डराती
झटपट चलती है ,खड़ी - खड़ी
क्या सखि साजन ?
ना काल घडी
धन की गागर छलकी…
ContinueAdded by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:00am — 15 Comments
क्षणिकाएं --
१
प्रतिभा --
नहीं रोक सके,
काले बादल
उगते सूरज की किरणें।
२
सपने --
तपते हुए रेगिस्तान
की बालू में चमकता हुआ
पानी का स्त्रोत, औ
जीने की प्यास.
३
आशा -
पतझड़ के मौसम में
बसंत के आगमन का
सन्देश देती है,
कोमल प्रस्फुटित पत्तियां।
४
संस्कार -
रोपे हुए वृक्ष में
मिलायी गयी खाद,
औ खिले हुए पुष्प।
५
पीढ़ी -
बीत गयी सदियाँ
नही मिट सकी…
Added by shashi purwar on January 31, 2014 at 10:00pm — 11 Comments
नये वर्ष से है ,हम सबको
उम्मीदें कुछ खास
आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हरिक डाली
मौसम घर का बदल गया ,
फिर
विवश हुआ माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
भीगे से अहसास
दरक गये दरवाजे घर के
आंधी थी आयी
तिनका तिनका भी उजड़ गया
बेसुध है माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आये कोई पास
चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया
नयी जगह घबराय
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे समझाय
ऊँची ऊँची अटारियों पे…
Added by shashi purwar on January 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments
Added by shashi purwar on December 21, 2013 at 2:00pm — 15 Comments
Added by shashi purwar on October 15, 2013 at 3:30pm — 14 Comments
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१६ / ९ /१३
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 12 Comments
फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है
मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .
फूल माला में गुथे या केश की शोभा बने
टूट कर फिर डाल से ये फूल तो मुरझाते है
फूल का हर रंग रूप तो सुरभि भी पहचान है
फूल डाली पर खिले तो भौरों को ललचाते है
फूल चंपा के खिले या फिर चमेली के खिले
फूल सारे बाग़ के मधुबन को ही महकाते है
भोर उपवन की देखो तितली से ही गुलजार हुई
फूलों का मकरंद पीने भौरे भी मंडराते है
पेड़ पौधो से सदा…
Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 13 Comments
Added by shashi purwar on October 1, 2013 at 3:01pm — 18 Comments
Added by shashi purwar on September 23, 2013 at 3:30pm — 20 Comments
मन के उपजे कुछ हाइकू आपके समक्ष --
१
मन के भाव
शांत उपवन में
पाखी से उड़े .
२
उड़े है पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड है खाली ।
३
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
४
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
५
मै का से कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।
६
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली…
ContinueAdded by shashi purwar on September 10, 2013 at 1:30pm — 16 Comments
1
क्यूँ तुम खामोश रहे
पहले कौन कहे
दोनों ही तड़प सहे .
२
आसान नहीं राहे
पग पग में धोखा
थामी तेरी बाहें .
३
यह जीवन सतरंगी
राही चलता जा
है मन तो मनरंगी .
४
साचे ही करम करो
छल तो काला है
जीवन में रंग भरो .
- शशि पुरवार
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shashi purwar on July 22, 2013 at 1:00pm — 9 Comments
रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण, लेखिका से वार्ता के पश्चात हटा दी गई है ।
एडमिन
Added by shashi purwar on July 14, 2013 at 5:30pm — 14 Comments
प्रकृति की
नैसर्गिक चित्रकारी पर
मानव ने खींच दी है
विनाशकारी लकीरे
सूखने लगे है
जलप्रताप, नदियाँ
फिर
एक सा जलजला आया
समुद्र की गहराईयों में
और प्रलय का नाग
निगलने लगा
मानवनिर्मित कृतियों को,
धीरे धीरे
चित्त्कार उठी धरती
फटने लगे बादल
बदल गए मौसम
बिगड़ गया संतुलन
हम
किसे दोष दे ?
प्रकृति को ?
या मानव को ?
जिसने अपनी
महत्वकांशाओ…
ContinueAdded by shashi purwar on July 12, 2013 at 12:30am — 18 Comments
अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है
सूखे गुल की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है
बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है
दिल में दबी है चिंगारी
जलती शमा रातो में है
चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है
नश्वर होती है रूह
प्रेम समर्पण भाव में है
अविरल चलती ये साँसे
रहती जिन्दा तन में है
खेल है यह तकदीर का
डोर…
Added by shashi purwar on July 3, 2013 at 10:30pm — 8 Comments
मित्रो इस बार नेट व्यवधान के कारन यह मुशायरा अंक में प्रस्तुत नहीं कर सकी थी , एक छोटा सा प्रयास किया था ...आपके समक्ष -- समीक्षा की अपेक्षा है;
चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
लोग कितने अजब है चल के देखते है
गली गली में यहाँ आज पाप कितना फैला
खुदा के नाम पे ईमान छल के देखते है
ये लोग कितने गिरे है जो आबरू से खेले
झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है
ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
बनावटी ये जहाँ से निकल के…
Added by shashi purwar on July 1, 2013 at 3:00pm — 14 Comments
गंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान
मैला करते नीर को ,यह पापी इंसान .
सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल
कूड़े करकट से हुआ ,जल जीवन बेहाल .
गंगा को पावन करे , प्रथम यही अभियान
जीवन जल निर्मल बहे ,सदा करे सम्मान .
--- शशि पुरवार
Added by shashi purwar on March 20, 2013 at 4:08pm — 12 Comments
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