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प्रकृति ने दिया अपना जबाब ......

प्रकृति की

नैसर्गिक चित्रकारी पर

मानव ने खींच दी है

विनाशकारी लकीरे

सूखने लगे है

जलप्रताप, नदियाँ

फिर

एक सा जलजला आया 

समुद्र  की गहराईयों में

और  प्रलय का नाग

निगलने लगा

मानवनिर्मित कृतियों को,

धीरे  धीरे

चित्त्कार उठी धरती

फटने  लगे बादल

बदल गए मौसम

बिगड़ गया  संतुलन

हम

किसे दोष दे ?

प्रकृति  को ?

या मानव को ?

जिसने अपनी

महत्वकांशाओ तले

प्राकृतिक सम्पदा का

विनाश किया,

अंततः  

रौद्र रूप  धारण करके

प्रकृति ने दिया है

अपना जबाब ,

मानव की

कालगुजारी का,

लोलुपता  का,

विध्वंसता का,

जिसका

नशा मानव से

उतरता ही नहीं .

और 

प्रकृति उस नशे को

ग्रहण  करती नहीं .

 --शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 720

Comment

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Comment by वीनस केसरी on July 15, 2013 at 12:12am

कटु सत्य को सामयिक प्रारूप प्रदान कर अक्षरों में ढाल देना हर किसी के बस की बात नहीं होती

इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by shashi purwar on July 14, 2013 at 5:43pm

सभी मित्रो का तहे दिल से आभार आपने रचना को सहारा और प्रोत्साहित किया

सौरभ जी आपका आशय समझ गयी अभी गौर फरमाया , यह चंद छोटी से टंकण गलती हमारे नेट महाराज की दें है ,आशा है आप माफ़ कर देंगे :) सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2013 at 2:14pm

आदरणीया शशि जी बहुत ही मार्मिक रचना कटु सत्य, प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 13, 2013 at 11:27am

बहुत बड़ा सच है "प्रकृति उस नशे को ग्रहण  करती नहीं", सुन्दर रचना और कटु सत्य कहने के लिए बधाई, शशि जी |

Comment by vijay nikore on July 13, 2013 at 10:27am

अच्छे भाव हैं, आदरणीया। बधाई।

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2013 at 12:03am

आपकी तथ्यात्मकता की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है, आदरणीया शशि जी.. . 

बधाई व शुभकामनाएँ.

आप जैसी विदूषी रचनाकार और सचेत पाठक से अक्षरी दोषों के प्रति आग्रही होने की अपेक्षा समीचीन है, आदरणीया.

सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 10:36pm

आ0 शशि जी,   सुन्दर प्रस्तुति।  बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2013 at 5:16pm

जिसका

नशा मानव से

उतरता ही नहीं .

और 

प्रकृति उस नशे को

ग्रहण  करती नहीं .----ये अंतिम पंक्तियाँ रचन को प्रभावी बना रही हैं बहुत खूब बधाई प्रिय शशि जी 

Comment by shashi purwar on July 12, 2013 at 3:21pm

प्राची जी राजेश जी सुझाव के लिए आभार

Comment by shashi purwar on July 12, 2013 at 3:20pm

 राजेश जी आपका कथन मान्य है यह   आ सका रचना में अभी तो बहुत कुछ जोड़ना है इसे  सुधार करूंगी , बहुत समय बाद कलम को विषम परिस्थिति में हाथ में लिए है

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