अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है
सूखे गुल की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है
बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है
दिल में दबी है चिंगारी
जलती शमा रातो में है
चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है
नश्वर होती है रूह
प्रेम समर्पण भाव में है
अविरल चलती ये साँसे
रहती जिन्दा तन में है
खेल है यह तकदीर का
डोर खुदा के हाथो में है
शशि पुरवार
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
22 22 22 2 ISPE METER RAKHE OR SAJKAR AAYEGI
MAIN BHI SIKH RAHA HU. BHAVISHYA KE LIYE SHUBH KAMNAYEE
सूखे गुल की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है
yE SHER BEHR SE BAHAR HAI
ATTI SUNDER RACHNA
अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है
सूखे गुल की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है
बहुत सुंदर
प्रस्तुति वस्तुतः उपस्थिति सदृश है.
इस हेतु आभार
सादर
atendra ji d p mathur ji aapka tahe dil se dhanyavad ,aapne apni pasand ko jahir kiya ,
चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है
विरह का दर्द होता ही ऐसा है ......आपके प्रेम के ये अलफ़ाज़ आपकी रचना में दिखती है ....भावपूर्ण रचना बधाई अतेन्द्र की तरफ से
नश्वर होती है रूह
प्रेम समर्पण भाव में है
उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई !!
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