For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल -- कुछ और करिश्मे गजल के देखते है

मित्रो इस बार नेट व्यवधान के कारन यह मुशायरा अंक में प्रस्तुत नहीं कर सकी थी , एक छोटा सा प्रयास किया था ...आपके समक्ष -- समीक्षा की   अपेक्षा है;


चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
लोग कितने अजब है चल के देखते है

गली गली में यहाँ आज पाप कितना फैला
खुदा के नाम पे ईमान छल के देखते है

ये लोग कितने गिरे है जो आबरू से खेले
झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है

ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे  
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है

कलम ये कहे इक प्यार का जहाँ हो ,चलो
अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है

---- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pragya Srivastava on July 2, 2013 at 5:15pm

शशी जी......बहुत सुंदर गजल........बधाई स्वीकार करें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2013 at 3:37pm

शशी जी ..ओपन बुक्स ओं न लाइन से आप भी जुडी ..इसके लिए हार्दिक शुभकामनाएं....इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधायी..सादर 

Comment by shashi purwar on July 2, 2013 at 2:11pm

माननीय सौरभ जी आपका तहे दिल से आभार आपने जिस तरह गजल की कमियाँ कही है ,मुझे सिखने में और सुधार करने के लिए बहुत मदद मिली है ...... एक एक शेर की कमियां जिस तरह आपने समझाई है ...शब्द नहीं है मेरे पास , /// दिल से शुक्रिया , इस मार्गदर्शन से गजल को पूरा करती हूँ  और भी शेर जोड़ने का मन था गजल पूर्ण करूंगी ,  कलम शब्द का वजन  में चुक हो गयी ध्यान रखूंगी .....अपना स्नेह और मार्गदर्शन बनाये रखें .आभार

Comment by shashi purwar on July 2, 2013 at 2:07pm

 माननीय वीनस जी आपका  दिल से शुक्रिया आपके शब्दों ने होसला बुलंद कर दिया , यह गजल समय अभाव के कारन अंतिम दिन रात ११ बजे शुरू की थी , और  लम्बे समय बाद लिखा , आपकी प्रतिक्रिया ने प्रोत्साहित किया है , मै पुनः इस गजल को सुधार करूंगी , आपके मार्गदर्शन से  ही इतनी  गजल लिखने की शुरुआत हुई है , इसे पूर्ण करना ही है आभार स्नेह बनाये रखें

Comment by vandana on July 2, 2013 at 7:37am


ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे   
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है

बढ़िया है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 4:52am

1212 1122 1212 112  या

1212 1122 1212 22   

इन दो तरीकों से मिसरों को इस में बह्र में बाँधा जा सकता है. इस हिसाब से पूरी ग़ज़ल को होने देना था.

आपकी ग़ज़ल के हर शेर से गुजर कर देखते हैं --

चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
ये लोग कितने बेईमान चल के देखते है

मतले का उला तो ग़ज़ब हुआ है. लेकिन सानी इस उला से सामंजस्य नहीं बना पा रहा है. सानी को ऐसे कहा जाय तो बात स्पष्ट होती दिखती है - कि लोग कितने अज़ब हैं ये चल के दखते हैं .. या इसी तरह का कुछ


गली गली में देखो आज पाप कितना फैला .
खुदा के नाम पे ये मान छल के देखते है

जो मात्रिक अक्षर किसी शब्द के बनाव का अहम हो उस अक्षर की मात्रा को गिराना उचित नहीं माना जाना चाहिये. देखा ऐसा ही शब्द है. इसके दे को गिराने से शब्द का अर्थ और प्रभाव दोनों समाप्त होता दिखता है, वह दिखा की तरह प्रतीत होता है. 

गली गली में यहाँ पाप कितना फैला है  किये जाने से बात थोड़ी स्पट होती प्रतीत होती है, साथ ही सँभलती हुई भी दिखती है.

सानी में मान छलना  बहुत उचित प्रयोग प्रतीत नहीं हुआ.

ये कितने लोग गिरे है जो आबरू से खेले
झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है

यह शेर कुछ और समय मांगता है. आपके अनुभवजन्य प्रयास से इसमें अभी और सुधार होना है. करके देखिये.


ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे  
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है

यह शेर बेहतर हुआ है. वैसे सानी पर थोड़ी और मशक्कत की दरकार है.


ये कलम तो कहे इक प्यार का जहाँ हो ,चलो
अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है

उला बह्र से भाग रहा है, आदरणीया. कलम शब्द का वज़्न १२ होगा नकि २१ या १११. इस हिसाब से मिसरा उला को फिरसे देख जाइये.

आपकी कोशिश और प्रस्तुति केलिए अतिशय धन्यवाद, आदरणीया शशिजी. धीरे-धीरे आप सिधहस्त होती जाइयेगा. इसी मंच पर ग़ज़ल की कक्षा समूह में आदरणीय तिलकराज जी के या भाई वीनस के लेखों से आपको बहुत लाभ मिलेगा.

शुभेच्छाएँ

Comment by वीनस केसरी on July 2, 2013 at 1:49am

शशि पुरवार जी आपका हार्दिक स्वागत है ...

ग़ज़ल कहन के स्तर पर खूब दाद के काबिल है ,,, मेरी ओर से बधाई स्वीकारें ....

ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे   
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है 

इस शेर के लिए विशेष बधाई स्वीकारें ..

उचित समझें तो बाकी सभी अशआर की लय पर पुनः गौर कर लीजिए... कहीं कहीं भटक गयी है हल्के हेर फेर से दुरुस्त हो कर मुकम्मल ग़ज़ल शानदार हो जायेगी  

सादर शुभकामनाएं 

Comment by shashi purwar on July 1, 2013 at 11:37pm

kavi ji ,ram ji getika ji , arun ji ,jitendra ji bahut bahut dhanyavad aapka

abhinav ji bilkul aapse sahamt hoon ,abhi gajal likhna yahin se shuru kiya , aur yah to sirf 1 ghante me likhi ...samay ka abhav tha ,abhi aur sukhna hai mujhe . aapki salah sar aankho par :) shukriya


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 1, 2013 at 10:38pm

वर्तमान परिदृश्यों को बड़ी ही सहजता से गज़ल में पिरोया है. कहन की सादगी प्रशंसनीय है.

ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे  
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है

इस अश'आर पर ढेरों दाद स्वीकार कीजिये..........

Comment by Abhinav Arun on July 1, 2013 at 8:24pm

आदरणीय शशि जी आपके इमानदार  भाव और विचारों के प्रवाह की दिल से तारीफ करता हूँ । बाकी ओ बी ओ पे ही सीखा है और सीख रहा हूँ ..ग़ज़ल का अपना व्याकरण है और ओ बी ओ पे उजागर भी है श्री वीनस जी के आलेखों को समय दें शिल्प भी अवश्य सुधर जाएगा !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service